SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७. सूत्र भगवती-जोड़ लिखी है सति खूमांजी श्री कालू - बरतारे' । पूर्ण भगवती लिखी सती - युग', कुण गुरु- कृपा बिसारे रे ।। ३८. नमणी खमणी सोनां श्रमणी, अणचां तपसण' गण में गौरव पायो । कठिन काम करणे री क्षमता, समता - रस सरसायो रे ।। ३६. निज अनुभूत अनेक संस्मरण, रख्या सुरक्षित लिख्या कालूयशोविलास-शिखा शुभ, सदा रहै शिखा - ४. दोहा संघ रै हित में । संवित में रे ।। १. अनुशासन अरु शिष्टता, क्यूं लंघै किण हेत ।। पुष्टाचार-परम्परा, साझै सदा सचेत ।। २. मार्मिक शिक्षण मुनिपति, देता नित निर्भीक । सुध लेता सबकी समै, अटल अनुज्ञा लीक । । ३. काछ वाच निकलंकता, तेरापथ रो रूप । सदा-सदा विकसित रहै, ओ अध्यात्म स्वरूप । । ४. गळबे फूट्यो घी घड़ो, पींदे फूट्यो एक । एक अखंड उदाहरण, समझाता सुविवेक' ।। ५. सेठ विदाई की बगत, दी शिक्षा गंभीर । सेठाणी कहाणी सुगुरु, कहता सहज सधीर' ।। ७ श्री कालू गुरुदेव रा जीवन-संस्मरण सुणाऊं रे । पाऊं परम प्रसन्नता । । १-६. देखें पं. १ सं. ११०-११५ ७. लय : तेजा ८. देखेंप. १ सं. ११६ ६. मगन कथन स्यूं जाण्यो गुरुवर मुझ पर दृष्टि टिकाई रे, जब स्यूं वैरागी बण्यो" ।। श्री कालू री परम कृपा पल-पल वृद्धिंगत पाई रे, रहतो सहज बण्यो - ठण्यो ।। शिखा - ३, ४ / २४३
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy