________________
२३. भीनासर सिरि-पूज-उपाश्रय, संवेगी मुनि पूछ सुगुरु-समक्षे।
'कदागुरोकसो भवन्तः' संत कही शुभ लक्षे रे।। २४. 'कुमरीनवभूपस्य' अपर इक, सन्धी पूछी उलझ्या श्रमण सयाणां।
कालू-कृपया सोहन चूरू, आराधी गुरु आणां रे।। २५. हुलस हजारां गाथा बगसी, एक-एक नै विद्या विभव बढ़ाणै।
जगन मझम उत्कृष्ट योग्यता, स्वामी स्वयं पिछाणै रे।। २६. जटिल कौमुदी क्लिष्ट हैम है, और चंद्रिका सारस्वती अधूरी।
सरल विरल क्रम 'भिक्षुव्याकरण', अभिनव बणी जरूरी रे ।। २७. रजोहरण-निर्माण सिलाई, और रंगाई चित्र-लेख-चतराई।
हरताळी स्यूं लिख बारखड़ी री पाट्यां बगसाई रे।। २८. आर्य अनार्य देश चर्चा में, आगम उद्धृत पाठ सामनै आयो।
अनुसंधान अनाग्रहयुत, भारी साहस दिखलायो रे ।। २६. करै ज्ञान की क्यूं आशातन? श्री गुरुवर की कड़ी शासना इण में।
उदाहरण छापर-पावस में, चांदमल्ल मुनिगण में रे।। ३०. बीदासर गुरुवर-प्रवचन में, कानकंवरजी विचरत-विचरत आया।
कर आचार्जी री आशातन, लोक ओळमो पाया रे ।। ३१. नमोक्कार-मन्त्रोच्चारण में, स्थान-लोभ स्यूं खड्या न श्रावक कोई।
पड़ी कड़ी फटकार समय सरदारशहर जन जोई रे।। ३२. शिवजी छोटूजी-सा नटखट, सब व्यसनां स्यूं यावज्जीव उबाऱ्या।
उत्तेजित जत्ती-रासै में, धैं धा करता वाऱ्या रे"।। ३३. पचरंगी में कुंदन मुनिवर, अति आग्रह पर तेलो नहीं लिखायो।
सुगुरु इशारै स्हारे, तीयै ऊपर तियो चढ़ायो रे ।। ३४. दो सुत एक सुता दीक्षित कर, निज में दीक्षित केवल नाम कमायो।
शासन भक्त तपस्वी लेखक, गण में गौरव पायो रे१३।। ३५. जेठांजी रो मान सवायो, श्री डालिम रो इंगित खूब अराध्यो।
पुनि-पुनि करी प्रशंसा निज-मुख शासन-गौरव साध्यो रे ।। ३६. पुस्तकीय शिक्षा स्यूं वंचित, श्री झमकूजी शिक्षित जीवन जीयो।
श्रमणीगण में श्री गुरु-कृपया, बो जगमगतो दीयो रे१५ ।।
१-१५. देखें पं. १ सं. ६५-१०६
२४२ / कालूयशोविलास-२