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________________ ८. रग-रग में वैराग्य रम्योड़ो, जिनशासन री मुद्रा हर वर्तन में । आत्म-साधना संघ-साधना, एक रूप तन-मन में रे । । ६. विद्या-प्रेम अपूर्व अंग में, सारै जीवन सक्रिय रूप सिखायो । सबनै 'घो. ची. पू. ली. रो पथ' श्री गुरुदेव दिखायो रे' ।। १०. षड्दर्शन प्रमाणनय मुझनै परम कारुणिक कंठस्थित करवाय न्यायशास्त्र अरु काव्यशास्त्र रो महातम हृदय बिठायो रे ।। ११. प्राकृत रो व्याकरण रटायो, 'ज्ञान कंठ में दाम अंट में ओपै' ३ । आगम-अनुशीलन नव-पद्धति-बीज हृदय में रोपै रे ।। १२. असवारी' री राग सुणाओ और 'कुमारी ना'' है कवण विभक्ति । बड़ां - वड़ां री मति चकराई, म्हारी सझगी भक्ति रे ।। १३. शिव - जागरण शयन पुनि म्हारो, पुनि जागरण परस्पर दोषारोपण 1 गुरु- वात्सल्य गणण-तारागण, सुमऱ्यां मानस - तर्पण रे" ।। १४. चली पाठशाळा गुरुकुल - विधि, नवदीक्षित मुनि मनै मनोगत मिलता । ओ फळ सुगुरु अपूर्व कृपा रो शिशु विद्यार्थी खिलता रे" ।। १५. साध्वी - दीक्षा पर शिक्षा री नहीं व्यवस्था, मैं बचपन-सो कीन्हो । तुच्छ प्रार्थना गुरु अतुच्छ - मन, बड़ो ध्यान दे दीन्हो रे ।। १६. फट्या-पुराणां कपड़ों में भी, सरस्वती रो वरद पुत्र मिल ज्यातो । गीर्वाणी वाणी रो ज्ञाता, (तो) कालू- दिल खिल ज्यातो रे ।। १७. घंटां ज्ञान-गोष्ठियां चलती, संस्कृत विद्या में पूरो रस लेता । बखत- बखत वक्ता श्रोता नै लोट-पोट कर देता रे ।। १८. अगर व्यर्थ पांडित्य-प्रदर्शन, करतो कोई बणकर पंडितमाणी | चोटी खांच चंद्रशेखर ज्यूं, करता पाणी-पाणी रे" ।। १६. नवदीक्षित संतां सतियां री, एक बार में सहज परखता बोली " । गहगी लिपळी बरड़ी इण री, बोली बड़ी सतोली रे ।। २०. समुचित प्रोत्साहन प्रताड़ना, और परीक्षण करता वत्सलता स्यूं । उदाहरण ल्यो भीम १२ रु मलयज १३, कुंदन आदि बतास्यूं रे ।। २१. धन-चंदन मुलतान बाल वय, बहिर्विहारी पड़िहारै सर कालू । लग्यो नहीं मन उदासीन सुण, की संभाल दयालू रे " ।। २२. नहीं पढूं मैं गरज न म्हांरै, नहीं पढ़ाऊं म्हांरै पिण नहीं गरजी । नहिं थारै नहिं इण रै, म्हांरै गरज कहै गुरुवरजी रे" ।। १-१६. देखें प. १ सं. ७६-६४ शिखा-३ / २४१
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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