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________________ म्हारै साथै मगन मुनी भी कड़ो ओळमो भोगे रे, खिण-खिण समरूं बा घड़ी।। १५. क्यूंकर विसरूं विस्मयकारक वत्सलता जो देखी रे। समरूं गद्गद-भाव स्यूं। छोटी-मोटी स्खलनावां में उलाहना उल्लेखी रे, याद करूं उच्छाव स्यूं।। १६. नानकियां संतां स्यूं सतियां स्यूं विनोद की बातां रे, करता परम प्रमोद में। बल्कलचीरी' बंगू, हाबू नत्थू नै बतलाता रे, गुण भरता नई पौध में।। १७. घटना अजब 'मदारी खां' री गुणियासिय चोमासे रे, छूट पड़ी पिस्तोलड़ी।। विजय अहिंसा सुगुरु-सत्य री आ उण रांगड़-रासे रे, चांको प्रभुता चोलड़ी।। १८. अद्भुत क्षमता उपशम रो परिचय अनेक वर दीधो रे, उपशम-आश्रित श्रमणता। चूरू मुस्लिम साथ मोरचो सिक्ख ‘नारसिंह' लीधो रे, गुरु समता-रस प्रवणता ।। १६. परम कृपास्पद पृथ्वी मुनि नै कड़ी नजर स्यूं देख्या रे, अनुशासन-अपराध में। हुई सफाई सब भरपाई मूल स्थिति कर लेख्या रे, बा ही करुणा बाद में ।। २०. मगन-स्हाज में मनोभेद की परिस्थिती जब सरजी रे, गुरुवर उपचर्या करी। तीन-तीन की चित्त समाधी अजब समाधी अरजी रे, सारां री दुविधा टरी ।। २१. सोहन-चूरू चौथमल्ल मुनि कृपापात्र कालू रा रे, वरणूं सहज सधीरता। सही डांट फटकारा लाग्या जाणक उन्हीं लू रा रे, गुरुवर गहन गंभीरता ।। वर १६. देखें प. १ सं. १२५-१३० शिखा-४ / २४५
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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