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________________ २८. असिए जयपुर झंड जमायो, चोरासिय नानाण' । पिच्यासी छापर जनुभूमी, गंगापुर चरिमाण।। २६. गण में दीक्षा हुई च्यार सौ दस गुरुवर-बरतार। पुरुष एक सौ पिचपन, दो सौ पिच्यावन स्त्री धार।। ३०. मुनि-दीक्षा में च्यार एक सौ अविवाहित सुकुमार। पत्नी सह बावीस, पांच तज शेष विधुर सुविचार।। ३१. साध्वी-दीक्षा में चौरासी कन्या बिना विवाह। पति साथे बाईस, त्याग पति तीन बीस सोच्छाह।। ३२. पति-वियोग में संयम साध्यो, सौ ऊपर छब्बीस। ___ आ दीक्षा री नूंध निहारो, गुरुचरणां नत शीष।। ३३. पतित हुया पैंतीस संयमी, मोह-उदय अवधार। तिणमें है चौबीस स्वदीक्षित, गुरुदीक्षित इग्यार।। ३४. एक सती फूलां गणबाहिर, अशुभ कर्म रै जोग। सारो दीक्षा-व्यतिकर समझो, लिखित यंत्र-उपयोग ।। ३५. घर में रह्या बरस इग्यारै, आचार्या री सेव। एकधार बाईस बरस लग करी छरी अहमेव ।। ३६. सावण-भादव सुद पूनम तक, रह्या गुप्त युवराज । पाछै प्रगट रूप पद पाया, अष्टम पद-अधिराज।। ३७. सप्तवीस बरसां स्वामी रो, रह्यो प्रशासन काल । तेरापथ में एक नयो युग बरतायो खुशहाल ।। ३८. अड़सठ संत सयाणी श्रमणी दो सौ पर इकतीस। श्री कालू नै सूप सिधाया स्वर्गां डाल गणीश ।। ३६. संत एक सौ नै गुणचाली, मूक्या अंतिम काल। श्रमणी बली तीन सौ तेती, श्री कालू गणपाल।। ४०. यूं गणरक्षण और प्ररोहण, करत सारणा सार। रखिया-रोहिणि रो कर दीन्हो, उदाहरण साकार।। १. श्रीडूंगरगढ़ २. चौबीस मुनि ३. देखें प. १ सं. ७० ४. उस वर्ष श्रावण दो थे, अतः कालूगणी तीन मास तक गुप्त युवाचार्य रहे। ५. देखें प. १ सं. ७१ २३४ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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