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________________ ४१. गंगापुर में भादव सुद छठ, शुभतर सायं जाण। सात मिनट संथारे स्वामी, कीन्हो स्वर्ग प्रयाण।। ४२. गुणसठ बरस मास छव साधिक, मध्यम आयू पाल। दिव्य धाम सुरधाम सिधाया, जै छोगां रा लाल।। ४३. सत्ताईस बरस लग सारी, इकसारी पजुवास। पल-पल मीट निहारी भारी मगन, बण्यो इतिहास।। ४४. चौथमल्ल मुनि बहु बरसां लग, सुगुरु-सुश्रुषा कीध। तन-मन झोस होश अति राख्यो, वाह! वाह! लाहो लीध।। ४५. व्यावचियो शिवराज ‘बडू' रो, खिण-खिण आज्ञाकार। परम पूज्य नै साताकारी, जीवन भर अविकार।। ४६. ज्येष्ठ सहोदर चम्पक मुनिवर, गुरु-इंगित आराध। सुजश कमायो सहु मनभायो, संजम सझ्यो अबाध ।। ४७. सुख, सोहन गणमोहन तन री, अंतिम सेवा साध। और-और पिण संत यथोचित, पाई परम समाध।। ४८. कानकंवर झमकूजी जूझी, गुरु-उपासना-हेत। क्षण-क्षण पल-पल सजग सयाणी. निर्मल हृदय-निकेत।। ४६. और सत्यां पिण हार्दिक भावे, सेवा सझी अलभ्य। गुरु-उपकृति स्यूं उऋणता हित, खपणो निज कर्तव्य ।। ५०. संघ-चतुष्टय ऊपर श्री गुरुवर रो वत्सल-भाव। संघ-चतुष्टय रो दिन-दूणो, भक्ति भर्यो दृढ़ भाव।। ५१. जय-जय भैक्षवशासन-भासन, विश्व-विकासन देव। पापप्रणाशन · धर्मप्रकाशन, सर्वंसह वसुधेव ।। ५२. श्रेष्ठ श्रेष्ठतम प्रेष्ठ प्रेष्ठतम, ज्येष्ठ ज्येष्ठतम खास। स्थेष्ठ यथेष्ठ पवित्र चित्रकर कालूयशोविलास।। ५३. सुणत-सुणत सिर धुणत, अनोखो जागै अंतर स्नेह। श्रवणानंदन कलुषनिकंदन, गौरवाब्धि गुणगेह।। ५४. शांत करुण रस तरुण हास्य रस, वीराद्भुत अनवद्य। प्रादुर्भूत अभूतपूर्व रस, श्रोता-हदये सद्य।। १. प्रस्तुत ग्रंथ के संशोधन काल (वि. सं. २०३२) में आचार्यश्री तुलसी के ज्येष्ठ सहोदर मुनिश्री चंपालालजी (सेवाभावीजी) का स्वर्गवास हो गया, इस दृष्टि से उक्त पध में 'संजम सझ्यो अबाध' यह रखा गया है। २. आचार्य शिखा-१ / २३५
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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