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'गंगापुर में गुरु-शवयात्रा, सझी विमात्रा सरसावै। धरणीधर अंबर गरणावै, नर-नार नगर में नहिं मावै ।।
१६. मध्य स्थान विमान में रे, सुगुरु-शरीर ललित लहकै, अतर अगर सुरभित घृत अरचित, चरचित घन चंदन चहकै । मुख मुखपति स्वर्ण घटित महकै, मुक्ताफल तिलक ललाड़ छकै ।। २०. आतपत्र आगै चलै रे, चंवर ढळ दोनूं पासे, अहमहमिकया मानव धावै, स्कंधारोहण अभिलासे । निश्चिंत भले भूखे-प्यासे, विरहाकुल अंतर विश्वासे । । २१. लाल गुलाल उछालता रे, मुठ्यां भर-भर मस्तपणे, भावुक भजन उचारै भविजन, अतुल आरती हर्ष घणै । मधुर स्वर तान वितान बणै, पड़छंदा सहसंगान छणै ।।
आरती
ॐ जय कालू गुरुदेव, ॐ जय कालू गुरुदेव । धन्य जमारो तिण रो, निशदिन सारी सेव' ।।
२२. छापर में अवतरियो गुणदरियो स्वामी । बीदासर मघवा कर संयम - श्री पामी ।। पट्टोत्सव पीनो । तपियो दृढ़ सीनो ।। थलवट हरियाणे । ढूंढाड़ा पंजाबां विचरण मंडाणे ।। २५. त्रिशला - सुत शासण री आभा अति भारी ।
२३. चंदेरी छ्यांसट्ठे सत्तावीस बरस लग
२४. मरु मालव मेवाड़ां
तेरापथ-प्रख्याती पग-पग विस्तारी ।। २६. भोग भयंकर शंकर सहज त्याग - सरणी । अभयंकर दरसाई शिवपुर - संचरणी ।।
१. लय : डेरा आछा बाग में
२. कालूगणी के स्वर्गारोहण पर जयपुर निवासी गुलाबचंदजी लूणिया ने आरती की रचना
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की थी। उसके स्थान पर आचार्यश्री ने उसी लय में उस आरती को परिष्कृत रूप में लिखकर 'कालूयशोविलास' में जोड़ दिया ।
उ.६, ढा.१४ / २२३