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२७. लाखां री डगमगती नैया नै तारी।
जैन जगत जगदीश्वर! थारो आभारी।। २८. दृढ़तम हार्दिक भावे कायिक कष्ट सह्यो। ___ गंगापुर चरमोच्छब छक्कां छाय रह्यो।।
'गंगापुर में गुरु-शवयात्रा सझी विमात्रा सरसावै।
२६. ठीक-ठीक ग्यारह बजे रे, 'रंग-भवन' स्यूं असवारी,
प्रारंभी अति लम्बी लाइन, मंद-मंद गति संचारी।
सारै पुर चहल-पहल भारी, भारी मन चाल्या अनुचारी।। ३०. अनुमानिक परमाण स्यूं रे, संख्या तीस हजार मिली,
परिमित लोके अमित द्रव्य ज्यूं गंगापुर री गळी-गळी। नगरी सगरी री शान खिली, निखरी अनुपम आभा उजळी।।
शोभा शवयात्रा री।
३१. सारै पुर में घूम ‘सोरती दरवाजै' बाहिर हो,
रंग-क्षेत्र में चिता सझाई सालै सद्गुरु-विरहो।
कियो दाह-संस्कार अंग रो ओ स्वरूप संसारी।। ३२. पंद्रह मण मलयागिरि चंदण अगर एक मण लाग्यो,
घृत कपूर नारेळ हजारां रो कहिं थाग न जाग्यो।
दुनियांवी व्यवहार सकल नहिं धर्म-धारणा धारी।। ३३. भुवन-भानु जग-तारक जगगुरु-काया यूं विललाई,
तो किणरो विश्वास अरे मन! काची सकल सगाई। षष्ठोल्लासे यशोविलासे ढाळ चवदमी प्यारी।।
१. लय : डेरा आछा बाग में रे २. लय : संयममय जीवन हो ३. रंगलालजी हिरण के खेत में।
२२४ / कालूयशोविलास-२