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________________ १०. प्रांत-प्रांत रा प्रमुख जन, मिलजुल उचित प्रकार। करै सजावट सांतरी, करण दाह-संस्कार।। शोभा शवयात्रा री, चकित-चकित-सी देखै आंख्यां भीड़-भरी जनता री। गळी-गळी घर-घर दरखत-दरखत अणगिण नर-नारी।। ११. सब स्यूं आगै दो शकटां पर धैं धैं बजै नगारा, धिधिकट धिधिकट धिधिकट धुन स्यूं भू-नभ एकाकारा। 'रंग-भवन' रै दरवाजै स्यूं छाई छटा अटारी।। १२. जाणक अंजनगिरि रा अंगज जुगल मतंगज चालै, ऊपर बैठ्या मानव मुठ्यां भर-भर रूप्य उछालै। झोळा भरै हजारां जाचक करता जय जयकारी।। १३. ध्वजा महेन्द्र गगन फहरावै बलि दो पुरै नगारा, पाछै सात तुरंग सूर्यरथ स्यूं ज्यूं लिया उधारा। हणहणाट कर झणझणाट कर बहै नृत्य करता री।। १४. आगै बैण्ड भीलवाड़ा रो उदयपुरी है लारै, छड़ियां घड़ियां स्वर्ण-रजतमय सज्ज मनुज कर धारै। जलप्रवाह ज्यूं चलै बेग गति गुरु-पादाब्ज-पुजारी।। १५. अब पैंसठ खण को अति टणको रणझण करतो आयो, सुरविमाण-सो जाणक सुरपति गणपति लेण पठायो। चुंधियाया-सा रहग्या सारा चमक-दमक लख भारी।। १६. चम-चम कर प्रत्येक खंड पर तुर्रा सही सितारा, रंग-बिरंगी झण्ड्यां स्यूं महकै कमनीय किनारा। तेज-पुंज-सो कुसुम-कुंज-सो है वैडूर्य विडारी ।। १७. झिगमिग ज्योत रूप्य कलधौत कलसियां रो मिष ठाणी, सूरज चांद जम्या श्रद्धा स्यूं जाणक भक्ति जगाणी। कारीगरां करांगुळियां स्यूं आभा अजब निखारी।। १८. बिचलो गुम्बज खीणखांप स्यूं मंढ़ियो महिमा पावै, शेष गुमटिया साटण-घटिया आसपास शोभावै । हाथोहाथ उठावै श्रावक बड़ा-बड़ा व्रतधारी।। १. लय : संयममय जीवन हो २२२ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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