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अति जोखिम टळी रे लोय, हुई संवत्सरी रे लोय,
तो पिण रहग्यो रे, मन रो मन में दोहड़ो।। १५. कुण यूं संभवी रे लोय, जननी नै ठवी रे लोय, ___पुत्र सिधासी रे, असमय में स्यालये। ____ कुण आ संभवी रे लोय, गंगापुर-भवी रे लोय, _____ओ चरमोच्छय रे, होसी झूलै संशये।। १६. मालव देश में रे लोय, विहरी शेष में रे लोय,
इक व्रण-जोगे रे, सारो तन यूं छीजसी। कुण जाणी इंयां रे लोय, सांझ समो लिंयां रे लोय,
आज कड़कसी रे, प्रलय काल की बीज-सी।। १७. पढ़णै रै समय रे लोय, बढ़णै रे समय रे लोय,
मैं नहिं जाणी रे, मुझ बूथै स्यूं कई गुणो। भार भुलायस्यो रे लोय, यूं पधरावस्यो रे लोय, म्हारा मन री रे, बातड़ली स्वामी! सुणो।।
१८. 'हो गुरु गुणगेहरा! आशा-तरु अणपार जो,
लड़ालुम्ब लहराया हृदय अमार. रे लोय । हो म्हारा शिरसेहरा! क्यूं ओ तरुण तुषार जो,
आज अनूठो बूठो विरह तुम्हारई रे लोय।। १६. हो गुरु गुणगेहरा! किण आगल कह बात जो,
कुण सुणसी अब म्हारी कहण कृपानिधे। रे लोय। हो म्हारा शिरसेहरा। निशदिन पुलकित-गात जो,
रहतो सम्मद लहतो नित पद-सन्निधे रे लोय।। २०. हो गुरु गुणगेहरा! तुम पद-कमल-पराग जो,
पान करण उत्संग भंगता धारतो रे लोय। हो म्हारा शिरसेहरा! लख मुख-चन्द्र सुभाग जो,
चित-चलचंचू असुख-अंगार उगारतो रे लोय।। २१. हो गुरु गुणगेहरा! खटकै खिण-खिण आज जो,
स्मार-स्मार इग्यार बरस री बातड़ी रे लोय।
१. लय : हो पिउ पखीड़ा
२१८ / कालूयशोविलास-२