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५. देखो बाणूं बरस री, जननी रो के हाल।
मूललाल देखालग्यो, आज अनोखो ख्याल ।। ६. खिण-खिण में सुमरै हृदय, बो सद्गुरु रो योग।
देखो आज वियोग में, सारा सपना मोघ ।। ७. सुख ही सुख संयोग में, जदि नहिं हुवै वियोग।
किण कारण सरज्यो विधी, जग वियोगमय रोग।। ८. आंख झांक रहता सुगण, प्रमुदित-चित हर बार।
आज विरह-विक्षेप में, झारै हृदय-बफार ।। ६. 'घन ओगाज ज्यूं रे लोय, मधुरावाज स्यूं रे लोय, जिण मुख वाणी रे, नाणीश्वर बरसावता।
आज हुयो किसूं रे लोय, ऊभा दस दिरों रे लोय,
तिण मुख स्हामा रे, देखै जन बिलखावता।। १०. मुख जीकारड़ो रे लोय, जी जीकारड़ो रे लोय,
ऊंचै पूंचै रे, गुरुवर जब फरमावता। भवि उलसावता रे लोय, अधिक उम्हावता रे लोय,
आज न झांके रे, आंखें आवत-जावता।। ११. पाट विराजता रे लोय, छिति पे छाजता रे लोय,
परिषद अनुपद रे, सेवा-संपद झांकती। कहि मानस-व्यथा रे लोय, करती संकथा रे लोय,
आज निहारै रे, विरही आंख्यां आखती।। १२. काल करालता रे लोय, अति विकरालता रे लोय,
इणरै बख में रे, सखम आप-सा आवसी। तो किणनै नहीं रे लोय, कहणै री रही रे लोय,
इण पापी रो रे, फिर कुण कच्छ कटावसी।। १३. सुरपुर को मिल्यो रे लोय, आमंत्रण झिल्यो रे लोय,
अठै न ओछी रे, आवश्यकता आपरी। क्षण-क्षण घड़ी-घड़ी रे लोय, देखां बाटड़ी रे लोय,
आ दुख-बेळां रे, पाछी क्यूं नां जा परी ।। १४. कुण जाणी इसी रे लोय, आज हुई जिसी रे लोय,
सहसा पड़सी रे, यूं बाल्हेश-बिछोहड़ो। १. लय : ज्यां सिर सोवता रे लोय
उ.६, ढा.१३ / २१७