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४०. जिण रै द्वारा सारां रो है इण दुनिया में अंत, हंत ! हंत! बो अंत न पावै अकरुण क्रूर कृतंत । दुर्जय द्वंद्व मचावै रे । । ४१. सकल संघ में अंग-अंग में व्याकुलता बिन थाग, प्रबल प्रतापी पुण्य-पोरसो ग्रह्यो स्वर्ग रो माग । अनघ उदासी छावै रे ।। ४२. वासरपति पिण शासणपति रो सुरपुर-गमन विलोक, केवल ग्यारह मिनट बाद ही अस्तंगत धृतशोक । सागर पार पलावै रे ।। ४३. छट्ठे उल्लासे बारहवीं बड़ी विरहिणी ढाळ, अन्त्य समय से विवरो सिंवरो 'तुलसी' हृदय दृढ़ाल । गुरु-गुण-गंगा न्हावै रे । ।
ढाळ: १३
दोहा
१. सप्त बीस बरसां सुधी, कर शासन-संभाल । मूललाल देखालग्यो, आज अनोखो ख्याल ।। २. इक सौ उणचाली मुनी, रह्या सुगुरु- दृग न्हाल' । मूललाल देखालग्यो, आज अनोखो ख्याल ।। ३. तीन तीस युत तीन सौ श्रमणी बणी निढाल' ।
मूललाल देखालग्यो, आज अनोखो ख्याल ।। ४. लाखां श्रावक-श्राविका, विरही हुआ विहाल । मूललाल देखालग्यो, आज अनोखो ख्याल । ।
१,२. पूज्य कालूगणी गंगापुर पधारे, उस समय संघ में साधुओं की संख्या १४१ तथा साध्वियों की संख्या ३३४ थी । यह उल्लेख छठे उल्लास की ढाळ १।१५ में है। कालूगणी के स्वर्गवास के पश्चात उक्त संख्या में अन्तर आ गया। छठे उल्लास की ढाळ १३ ।२,३ अनुसार साधुओं की संख्या १३६ तथा साध्वियों की संख्या ३३३ है । पूज्य कालूगणी तथा एक साधु मुनि बनेचन्दजी (मोखुन्दा) का स्वर्गवास होने से साधुओं की संख्या दो कम हो गई। इसी प्रकार साध्वीप्रमुखा कानकुमारीजी का राजलदेसर में स्वर्गवास होने से साध्वियों की एक संख्या घट गई ।
२१६ / कालूयशोविलास-२