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३०. मगनलालजी स्वामी अब तक आय गया के नाय? मैं बोलू-नहिं आया, आवणवाळा है गुरुराय!
जा झट संत बुलावै रे।। ३१. बेग-बेग बहि बाट मगनमुनि आय खड्या गुरु-तीर, सम्मुख झांक 'अबै' दो अक्षर बोले सुगुरु सधीर।
आंतर भाय सुझावै रे।। ३२. संथारो पचखायां? पूछ सहसा मगन सजोश, हां' यूं होळे बोलै स्वामी अब लग पूरो होश।
पर नहिं बोल्यो जाये रे।। ३३. चीविहार संथारो तब ही पचखावै मुनि मग्न, भारी साहस को ओ परिचय दै शरणां संलग्न।
म्हारो दिल कुम्हलायै रे।। ३४. सिद्ध-सिद्ध अरिहंत देव रो है शरणो गुरुदेव, म्हां सारां नै शरण आपरो होज्यो देव! सदेव।
ऊंचे स्वर संभळावै रे।। ३५. मैं अनेक संता रै साथै देखू स्थिति प्रत्यक्ष, झमकूजी आदी कइ सतियां ऊभी पूज्य-समक्ष।
अवसर लाभ उठाये रे।। ३६. डॉक्टर कविवर रघुनंदनजी, घनश्याम पिण तत्र, खुल्ली आंखें गुरु-मुख झांके राखे मन एकत्र।
अब ओ वीर विलायै रे।। ३७. बैठा पास अमोलकचनजी बैंगाणी बीदाण, चंपालाल नाहटो', तीजो है शुभकरण सुराण।
जबर भंडारी भायै रे।। ३८. सात मिनट संथारे स्यामी कीन्हो स्वर्ग प्रयाण, आखिर समय सचेत अवस्था अस्त हुयो जग-भाण।
जनता अश्रु बहाये रे।। ३६. छय बज दोय मिनट पर गुरुवर कर अनशन स्वीकार, नव मिनटां पर नयन-द्वार वर जीवन रो निस्तार।
अंतिम कष्ट अभावै रे।। १. सरदारशहर नियासी २. घूरू निवासी ३. जयरमलजी भंडारी, जोधपुर
उ.६, ढा.१२ / २१५