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________________ २२. दस ही द्वार अपार रसीला शीलाश्रित संवाद | सुप्त चेतना स्फुरणा सागै जागै अंतर्नाद ।। २३. आलोयण' अरु व्रत - आरोपण खमतखामणारे सार । पाप अठारै वारै, धारै सुखकर शरणां च्या ।। २४. दुष्कृत-निन्दा सुकृत-प्रशंसा" विदित भावना द्वार। आजीवन अनशन कर समरो प्रवर मन्त्र - नवकार ।। २५. निर्मलता निश्छलता निपजै खलता रो प्रतिकार । दिल उज्ज्वलता सहज सरलता आराधन अधिकार ।। २६. पतनशील परिणाम पलक में धावै दृढ़ता- दोर । आराधन में वीर-वृत्ति रो भाव भर्यो 'जय' जोर ।। २७. सुणत अचेतन एक बार तो मानो होय सचेत । बंद जबान गान हित हिचकै आराधन स्थिर-चेत ।। २८. शूरपणो कायर - चित चमकै घमकै जब रणतूर । त्यूंजय-कृत ‘आराधन' सुणतां पौरुष होत प्रपूर ।। २६. गणिवर अनुपम शांत रसाप्लुत अद्भुत अंग उमंग । तन-मन संयम-रंगे रंगै जाणक जीतै जंग ।। ३०. च्यारूं तीरथ संगे कीधा खमतखामणा स्वाम । स्वमति अन्यमति सहज खमावै ल्यावै सम परिणाम ।। ३१. संध्या मैं प्रतिक्रमण सुणायो बैठ्यो सारूं सेव । पांच महाव्रत मुझ उचरादै यूं भाखै गुरुदेव ।। ३२. गुरुवर नै महाव्रत उचराऊं पाऊं मन संकोच । पर इंगित - आराधन करणो आखिर यूं आलोच ।। ३३. दशवैकालिक सूत्र - पाठ महाव्रत चौथो अध्येन । मैं उचराऊं अक्षर-अक्षर सुण पावै गुरु चैन || ३४. बार-बार नवकार मन्त्र से आप जप्यो मुख जाप । आयू माप अल्प-सो जाणी नाणी थिरता थाप ।। ३५. कब ही आंख्यां खोलै बोलै होळ-सी आवाज । कब ही पोढ़े कबहि विराजै वेदन बेअंदाज ।। ३६. गांव-गांव रा लोक हजारां प्रतिदिन दरसण काज । एक नाळ चढ़ दूजी उतरै निशिदिन पंक्ती साझ ।। ३७. डॉक्टर वैद्य हकीम कीमती आया पाया तोष । पण इण अंगे आ बेमारी देख कियो अफसोस ।। उ.६, ढा.१० / २०७
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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