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________________ १२. रुक चरण-चरण जनता री श्रद्धा लेतो, पथ पार कियो ज्यूं-त्यूं जीकारो देतो। पाछो आयो तो बो ही प्रश्न खड्यो है, सारी चरिया रो चिंतन चित्त चढ्यो है।। दोहा १३. श्री कालू मुनि मगनजी, कियो सुखद सहयोग। दियो बोध श्रमणी-श्रमण स्वीकृत कियो अमोघ ।। १४. शब्द पंचमी-समिति रो, पाद-प्रमार्जन सार। __पट्टासन आचार्य ज्यूं, युवाचार्य-अधिकार।। १५. पाणी समचै राखणो, समचै करणो आ'र। _ 'युवाचार्य' आचार्य ज्यूं बहो संघ रो भार।। १६. इकसरखी सेवा करो, छोटा-मोटा सन्त। युवाचार्य बहसी सदा, आचार्जा रै पन्थ।। १७. सुणणी गतदिन-वारता, त्यूं हाजरी-विधान । __. आज्ञा अरु आलोयणा, प्रवचन सदा प्रधान ।। १८. इत्यादिक सब काम , ओ करसी स्वयमेव। मैं निश्चिंत हुयो अबै, यूं भाखै गुरुदेव।। १६. निकट पर्व संवत्सरी, गणनायक दृढ़नेम। मध्याह्ने करवावियो, केशलोच सप्रेम।। २०. प्रातः प्रवचन हाजरी बांची नै मध्यान। मैं गुरुराज-पदाब्ज में रह्यो भंगता ठान।। २१. जय-विरचित 'आराधना' बांचण रो संकेत। कर्यो स्वयं शासणपती, मैं तब पर्दू सचेत।। सुजना! स्वाम-आराधन भारी स्वाम-आराधन शिव-सुख-साधन, बाधन विषय-विकार। निज में निज-गुण रो संचार।। १. देखें प. १ सं. ५८ २. लय : सुगणा! पाप पंक परहरिए २०६ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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