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३. साध्वी-वंदन रै समय, दरसाई गणधार।
युवाचार्य-आचार्य री, वनणा-विधी उदार' ।। ४. नई सृष्टि अब स्यूं हुई, युवाचार्य-आचार्य।
कियां कठै कुण-सी किसी, रीति-रश्म अनिवार्य।। ५. संत-सती जाणे नहीं, श्रावक नहिं संलग्न ।
या जाणै गुरुवर स्वयं, या जाणै मुनि मग्न।।
लावणी छंद
६. मैं स्वयं बण्यो अज्ञात भार स्यूं भारी,
प्रत्येक कार्य में प्रगटी स्थिति दुविधा री। बैठू तो कठै किंयां किण रीते बैलूं?
बोलूं चालू बाहिर या भीतर पेढूं।। ७. आचार्यप्रवर रै साथै किण विधि वर्ते, किण विधि च्यारूं तीरथ रै साथ प्रवर्तं? यदि अनुचित रीते एक ही चरण बढ़ाऊं, अनभिज्ञ कहाऊ हास्यास्पद बण ज्याऊं।।
दोहा ८. इतले मगन कहै करो, ऊंचै स्वर आवाज। ___पधरावै पंचमि-समिति, युवाचार्य महाराज।। ६. नयो चोलपट्टो सहज,. ल्या पहरायो सन्त।
सारो जनसमुदाय है, रोमांचित अत्यंत।। १०. मुनि नथमलजी आविया, ले पाणी रो पात्र। सज्ज हुया सारा मुनि, सहचर उलसित-गात्र।।
लावणी छंद ११. संतां रै साथ चल्यो तो भीड़ भरी है,
जनता पग-पग पर बेअंदाज खड़ी है। हंसता-खिलता सब म्हारै स्हामै देखै, कालू-कृपया मुझनै कालू कर लेखै ।।
१. देखें प. १ सं. ५७
उ.६, ढा.१० / २०५