________________
२८. मोटा रो सिर हाथ धरायत लघु महान बण ज्यावै। ___'महर नजर दौलत"री घटना, कुण जो वितथ बतावै रे।। २६. संयुक्ताक्षर-योगे लघु-अक्षर-गुरुता आकर्णी।
वर्तमान विरतंत विलोकत, साच वदै व्याकर्णी रे।। ३०. लोह-कंचन-करणारो पारस, ग्रन्थ-ग्रन्थ में गायो।
पर पारस-करणारो पारस, आज सामनै आयो रे।। ३१. अहो सुगुरु-उपकार एक जिह्वा स्यूं क्यूंकर गाऊं?
जो नागेश-रसज्ञा' पाऊं, कांयक मन बहलाऊं रे।। ३२. मगन स्वस्थ आश्वस्तमना, हार्दिक कृतज्ञता टाणै।
भावपूर्ण इक दोहक स्यूं, गुरुवर रो विरुद बखाणे रे।। ३३. सकल संघ की चिंता मेटी, देखो छोगां-जायो।
जय-जय विजय-ध्वनि स्यूं, गहरो 'रंग-भवन' गुंजायो रे। ३४. चम्मालीस बरस स्यूं गणपति, नूतन काम करायो।
संघ-चतुष्टय-हृदय सुलय में, रंग उमंग बढ़ायो रे।। ३५. तीज-प्रभात समय रो वर्णन, वर्णवियो भलभावै ।
नवमी ढाळ विशाल भाल, श्री कालू रस बरसावै रे।।
ढाळः १०.
दोहा
१. गधिया गणेशदासजी', शासणभक्त उदार।
पुर-पुर में पहुंचाविया, समाचार दे तार।। २. तेल-बिंदु ज्यूं उदक में, फैली सारै बात।
सारां मन निश्चिंतता, हर्षे पुलकित गात।।
१. देखें प. १ सं. ५४ २. देखें प. १ सं. ५५ ३. शेषनाग के एक हजार मुंह तथा दो हजार जिह्वा होती हैं, ऐसा माना जाता है। ४. मंत्रीमुनि द्वारा कथित दोहा
रंग भवन में रंगरळी, पद युवराज प्रकाश।
मुनिच्छत्र महिमानिलो, पूरण करदी प्यास।। ५. देखें प. १ सं. ५६
२०४ / कालूयशोविलास-२