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________________ १८. रुक-रुक कर कर थाम-थाम कर सारो पत्र भर्यो है। गण-आचार्य-पंक्ति में अंकित 'तुलसी' नाम कर्यो है रे।। १६. अब आदेश दियो शिवराजी'! सब सन्तां नै तेड़ो। झमकूजी आदी सतियां भी जम्या, ठिकाणो नेड़ो रे।। २०. एक ओर है मगन आदि मुनि, श्रमण्यां बेठी सामै। श्रावक और श्राविकायां भी, ऊभी भरी सभा में रे।। २१. युवपद रो परिपत्र मगनमुनि खड्या पदै समभावै। मुदितमना मुझनै गणमालिक हाथो-हाथ दिरायै रे।। आचार्यश्री कालूगणी द्वारा लिखित परिपत्र-श्री भिक्षु पाट भारीमाल । भारीमाल पाट रायचन्द। रायचन्द पाट जीतमल। जीतमल पाट मघराज। मघराज पाट माणकलाल । माणकलाल पाट डालचन्द । डालचन्द पाट कालूराम। कालूराम पाट तुलछी (सी) राम। विनयवंत आज्ञा मर्यादा प्रमाणे चालसी, सुखी होसी। सं. १६६३ भाद्रपद सु. ३ गुरुवार। २२. चद्दर श्वेत चौकड़ी-मुलमुल' अब ही नई धराई। तुरत उतार उदारहृदय गुरु, मनै स्वकर ओढ़ाई रे।। २३. पद युवराज रिवाज साझ सब, मुझनै दीधो स्वामी। रजकण नै क्षण में मेरू बणवायो अंतर्यामी रे ।। २४. जलबिन्दू इन्दूज्यल मानो, शुक्तिज आज सुहायो। मृन्मयपिण्ड अखण्ड पलक में कामकुम्भ कहिवायो रे।। २५. साधारण पाषाण शिल्पि-कर, दिव्य देवपद पायो। किं या कुसुम सुषमता-योगे, महिपति-मुकुट मढ़ायो रे।। २६. मृन्मय-रत्न प्रयत्न-प्रयोगे, शाण पाण सरसायो। बिन्दु-सिन्धुता को जो उपनय, साक्षात आकृति पायो रे।। २७. बाल अनाथ साथ जो परती, सेठ सुरुदता भारी। है चरितार्थ कृतार्थ कहाणी', मैं देखू दृग डारी रे।। १. कालूगणी की शारीरिक सेया के लिए विशेष रूप से नियुक्त मुनि शिवराजजी। २. तेवीस, पच्चीस और सत्ताईस नंबर की मुलमल, उस पर चौकड़ी का चिह होता था। ३. देखें प.१ सं. ५३ उ.६, ढा.६ / २०३
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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