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________________ ७. मधुरामन्त्रण कर भणै, सु रे कल प्रातः सूर्योदये, स्याही शीघ्र ८. श्वेत पत्र पटड़ी सहित, लेखणघर ल्याज्ये अति ताकीद स्यूं, मत ६. हृष्टमना स्वीकृत करै, चंपक 'तहत तहत' बद्धांजली, निश्छल चंपालाल ! निकाल' ।। संघात । भूलीजे बात ।। सद्गुरु-चैन । निश्चल नैन ।। १०. बीती बीज - विभावरी, ततखिण तीज- प्रभात । इष्ट घटी प्रगटी प्रवर, गुरुवासर विख्यात ।। म्हांरो नाथ नगीनो भारी सुजश जग लीन्हो रे, मोने पद युवराज रो दीन्हो रे, म्हांरो नाथ... । ज्यांरो विक्रमशाली सीनो रे, म्हांरो नाथ.... 11 १. देखे प. १ सं. ५२ २. लय: जय जय नंदा २०२ / कालूयशोविलास-२ ११. प्रातः पड़िलेहण कर स्वामी, नवले वेष विराजै । 'रंग - भवन' रै बड़े हाल में, नवल धवलिमा साझै रे ।। १२. बाल सूर्य री लाल रश्मियां प्रभुवर-चरण पखारै । आकृति की अद्भुत प्रसन्नता, वातावरण निखारै रे ।। १३. चम्पक मुनिवर गुरु- आज्ञा स्यूं, सविनय हाजर कीन्हा । स्याही लेखण पटड़ी पानो, किंचित ढील करी नां रे ।। १४. वेदन-व्यस्त समस्त शरीरे, वाम हस्त- व्रण भारी । तो पिण पूज्य प्रशान्तमना, बण लेखक लेखणधारी रे।। १५. एक पांव तो धरती ऊपर एक पट्ट पर राखी । गोडै पर पानो धर बेठा, सूर्य सामने साखी रे ।। १६. मगन कहै - अतिमात्र परिश्रम लिखणो किस्यो जरूरी ? श्रम री है के बात, निभाणी संघ शृंखला पूरी रे । । १७. मने बुलायो ततखिण आयो चंपक बंधव साथे । सद्गुरु करै अपूर्व अनुग्रह धरै हाथ शिर- माथे रे ।।
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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