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२५. जो भी है बाकी बची रे, कहणी लिखणी शेष ।
सो कहस्यूं लिखस्यूं बली रे, अब तो रही न रेस । । २६. जो मुझ स्यूं न लिखीजसी रे, तो बो' लिखसी भाल । मैं तो मेहनत प्राय ही रे, म्हांरी दीन्ही टाल । | २७. इत्यादिक बातां भली रे, गणप्रबंध रे हेत ।
स्वाम अमावस - यामिनी रे, भाखी सकल सचेत ।। २८. हर्या भर्या मनड़ा ठऱ्या रे, सुणी सीख बड़भाग । सघन घनाघन-वृष्टि स्यूं रे, विकसित सारो बाग ।। २६. कहै मगन - अब पोढ़िए रे, आज किया अति क्लांत ।
पण सारां रा मन हुआ रे, घी पीया-सा शांत । । ३०. सुख फरमावै स्वामजी रे, सारै मुनिवर सेव । ढाळ आठवीं आ कही रे, सुमरत श्री गुरुदेव । ।
ढाळः ६. दोहा :
१. एकम दिन मध्याह्न में, आमंत्रित पुनरपि शिक्षा सांतरी, दै सद्गुरु २. मोटो गणसमुदाय है, तूं राखीजे आंकीजे छद्मस्थता', मत करजे मन ३. सतियां री संख्या बड़ी, शिक्षा वरै विकास । यूं करणो है हो सजग, सतत सफल आयास ।। ४. रात-दिवस अवसर लह्यो, जब-जब श्री गुरुदेव । सानुग्रह बगसीस की, चरणकमल री
सेव । ।
धर
चूंप |
५. दूज दिवस दोपहर में, केशलोच म्हांरो कियो,
चौथ मुनी
१. यह संकेत मुनि तुलसी के लिए है । २. देखें प. १ सं. ५१
एकांत ।
विश्रान्त ।।
ध्यान ।
म्लान ।।
हर्षोत्सुक
६. सायं सुगुरु- पदाब्ज में, ज्येष्ठ-सहोदर मैं बैठो सेवा सझं, गुरुवर ऊंचै
रूं-कूंप ।।
साथ ।
हाथ । ।
उ.६, ढा. ८,६ / २०१