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________________ १०. युवाचार्य-आचार्य रो रे, पारस्पर व्यवहार। त्यूं समाज-युवराज रो रे, साचै शिष्टाचार।। ११. पड़ी पुराणी बातड़ी रे, करणे हेत नवीन। ___म्हारै मन री भावना रे, आखू सुणो अदीन।। १२. साठ बरस पूरा हुयां रे, कर यात्रा संपन्न। करणै री जो धारणा रे, निज मन में प्रतिपन्न।। १३. थळी देश बीदाण में रे, छोगांजी रै पास। अधिकृत रूप समर्पतो रे, पद युवराज प्रकाश।। १४. श्रमण-सती श्रावक सभी रे, प्रकट देखता दृश्य। अभिनव रचना संघ की जो, बरसां रहि अदृश्य।। १५. जय-मघ मघ-माणक समै रे, जो बयॊ बरतार। परतख रूप दिखावतो रे, आनन्दित अनपार।। १६. अंगस्थिति अवलोकतां रे, ओ तो दुष्कर कार। धोरां धरती 'मां' रही रे, म्है बेठा मेवाड़।। १७. दर्दनाक सुण बातड़ी रे, संत हुया दिलगीर। कइयां री छाती छळी रे, ढळक्यो नयणां नीर।। १८. प्रबल पुण्य रा पोरसा रे, श्री कालू प्रख्यात। मनचिंती नहिं कर सक्या रे, ओरां री के बात। १६. अतुलबली दुर्बल हुवै रे, इण आयुष्य समक्ष । रोक सक्या नहिं वीरजी रे, भस्म-ग्रह प्रत्यक्ष।। २०. भणै श्रमणगण साच ही रे, बिंयां करो थिर थाप। जियां जठै धारो बढ़ रे, पुरुषोत्तम हो आप।। २१. थळी देश में जो रळी रे, करणी कर्यो विचार ।। अठै करो मेवाड़ में रे, सीझै सारा कार ।। २२. पूज्यप्रवर पभणै सही रे, आछो अवसर देख। सकल काम करणो अठै रे, लिखणो है त्यूं लेख।। २३. कल तक तो कहतो रह्यो रे, मोघम में मैं बात। आज प्रगट प्रत्यक्ष में रे, कीन्ही है शुरुवात।। २४. आ'र पछै मध्याह्न में रे, मैं उणनै एकान्त। तेढ्यो, कहणे रो कह्यो रे, अंतरंग वृत्तांत।। १. मातुश्री छोगांजी २०० / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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