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ढाळ सातवीं कलना हो, संकलना भावां री करी,
मूल मूल अनुवाद अंत अनुवाद।।
ढाळः ८.
दोहा १. बद्धांजलि मुनि मगनजी, सब संतां रै साथ।
कृतज्ञता ज्ञापित करै, की करुणा गणनाथ! २. प्रबल असातावेदनी-ग्रसित आपरो गात।
तो पिण आ अनुशासना, गहरी गौरय बात।। ३. जुग-जुग रहसी जीयतो, इण निश रो इतिहास।
तनु अशक्तता अयगणी, जो कीन्हो आयास।। ४. देव दयालू नहिं हुयो, अब लो अन्तस्तोष।
तोष-पोष पायां बिना, रहै न मन खामोश ।। ५. भैक्षवगण रो सामनै, है अति मोटो काम।
अब तक फरमायो नहीं, श्रीमुख किणरो नाम।। ६. मोघम में शिक्षा सकल, अकल-सरूपी आप।
दीन्ही पिण कीन्ही नहीं, चोडै किणरी थाप।। ७. अगर महरवानी करो, हरो व्यथा दिल-व्याप्त।
वरो स्वास्थ्य फिर उद्धरो जन-जीवन पर्याप्त ।।
'किण रै मन रो जाण्यो कद हुवै रे लाल ।
ओ तो आयुः कर्म कराल, आवै कणां कठां स्यूं चाल। मानव घड़े मनोरथमाल, पिण ओ खिण में करै विहाल ।।
८. बोले श्री कालूगणी रे, सुणतां श्रमण-समाज । __ आज किया करणे सकूँ रे, जो बांध्यो अन्दाज।। ६. रीत-भांत जाण नहीं रे, मुनि साम्प्रतकालीन। किणयिध युयपद दीजिए रे, शिष्य-चतुरता चीन ।।
१. लय : बोले बालक बोलना रे
उ.६, ढा.७,८ / १६६