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१४. प्रायश्चित्त प्रयोगे हो, समझाइस योगे सहज में,
___जमै हृदय जदि गण में तो है खैर। ऐर-गेर ही बोलै हो, नित घोळे जैर जबान में,
तो गणबाहिर करणे में क्यूं देर? १५. निज कर्तव्य निभाणो हो, भय खाणो घबराणो नहीं,
करतां रहणो चिंतन सदा स्वतंत्र। ओ भायी गणपति नै हो, संदेश विशेष शुभंकरू,
__अब गण-हित ल्यो मूंघामोलो मंत्र ।। १६. वय-नान्हा हो दाना हो, आचारज गणसमुदाय में,
श्रमणी श्रमण श्राविका श्रायक सर्व। एक भाव दिल राखो हो, मत भाखो व्यंग-विनोद में,
एक शब्द भी सह आक्रोश सगर्व ।। १७. आण अखंडित तिण री हो, आपंडितमरण बहो मुनी,
खंड-खंड हो ज्यादै चाहे प्राण। रहणो गुणमणिमंडित हो, दिल दंडित क्यूं करणो कहीं?
सद्गुरु-शरणो छडित छद्म छपाण।। १८. सावधान साधन में हो, बाधन में विषय-विकार नै,
आराधन में प्रतिपल जो व्रतिराज। शासण शोभै बां स्यूं हो, बै शासण स्यूं शोभै सदा,
__दोन्यां स्यूं महकावै मनुज-समाज।। १६. गण गणिवर स्यूं गणिवर हो, गण स्यूं ही लागै दीपता,
गण-गणियर स्यूं दीपै जिनवर-धर्म। तारक तारकपति स्यूं हो, तारकपति तारक-संघ स्यूं।
तारकपति-तारक स्यूं गगन समर्म।। . २०. अक्षर-अक्षर याणी हो, गुणखाणी श्री गुरुदेय की,
अंकित जाणी रू- आत्म-प्रदेश। मुनियर योजितपाणी हो, सुण माणी मोजा सांतरी,
बी वेळा रो अब तो सुमरण शेष।। २१. धन्या ते कृतपुण्या हो, जो मुनियर मायस-यामिनी,
साक्षात लीन्हो शिक्षा-रस-आस्वाद। १६ / कालूयशोविलास-२