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८. दुर्लभ मानव जीवन हो, दुर्लभतर दरसण जैन रो,
दुर्लभतम है तारक तेरापंथ। अभिनव बहै त्रिवेणी' हो, समश्रेणी निज घर आंगणे,
आपां बड़ा सुभागी इण विरतंत।। ६. आदिम-जिन' अवतरिया हो, गुणदरिया जाणक जगत में,
भीखणजी स्वामी नामी नयसूत्र। ___ मूर्तिमान मर्यादा हो, अध्येता शासन-सूत्र रा,
क्रान्ति-प्रणेता नेता अत्र अमुत्र।। १०. पट भारी ब्रह्मचारी हो, जय-जश मघ माणक मालवी',
एक-एक स्यूं बढ़-चढ़ता आचार्य। क्षण-क्षण करी रुखाळी हो, वनमाळी गणवन की सदा,
ओजस्वी दायित्व बह्यो अनिवार्य ।। ११. अब भी जो पद पावै हो, नेतृत्व निभावै संघ रो,
___ संघ-सुरक्षा हो सर्वोपरि लक्ष। उन्नत तीरथ-रथ नै हो, समुचित सतपथ में हांकणो,
नहीं राखणो मन में पक्ष-विपक्ष।। १२. मर्यादा में चालै हो, नहिं टाळे गुरु-आज्ञा अणी,
तिणनै देणो संयम रो आश्वास। विनयी विज्ञ विवेकी हो, उल्लेखी गण-इतिहास में,
तिण रो कभी न होणे देणो हास।। १३. जो स्वच्छन्दाचारी हो, अविचारी अविनयि आग्रही,
गण-मर्याद-व्यवस्था-अवगणनार। पेनी आंखें झांको हो, आंको त्यांरी करतूत नै,
हो सारां को सबल प्रबल प्रतिकार।।
१. एक आचार्य, एक समाचारी, एक प्ररूपण पद्धति। २. भगवान ऋषभ ३. आचार्यश्री भारीमलजी ४. आचार्यश्री रायचंदजी ५. आचार्यश्री जीतमलजी ६. मालव प्रांत में जन्म लेने वाले आचार्यश्री डालचंदजी
उ.६, ढा.७ / १६७