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________________ ३८. नव निदान अरु नई चिकित्सा निज-निज औषध साथ । करणी ठानै पिण नहिं मानै म्हांरो शासणनाथ ।। ३६. औ म्हांरै हित औषध ल्याया आया हित उपचार । मैंन सिकारूं हिम्मत धारूं संयम रो आधार ।। ४०. डॉक्टर वैद्य प्रदेशी देशी रहग्या देख इसड़ा संत भाग दुनियां रो बड़ी धर्म री धाक ।। ४१. जो आत्यन्तिक कष्ट समय में नष्ट करै नहिं नेम । अवाक । स्पष्ट वचन में ख्यात बात मुख कहतां उपजै प्रेम । । ४२. स्तुति-निन्दा सत्कार - निरादर लाभ-अलाभ समान । परम धरम अध्यात्मलीन गुरु शमरस में गलतान ।। ४३. मुझनै तब मुनिपति फरमावै अब तूं कर विश्राम | बहुली बीती रात तात री आ करुणा निष्काम ।। ४४. सारा सन्त करै अति आग्रह जो कछु नूतन बात । जोस्यां तो तत्काल जगास्यां बैठा म्है उपपात ।। ४५. आभ्यंतर-आलय मैं पहुंच्यो निवहण गुरु-निर्देश । दशमी ढाळ नयन नहिं निद्रा इक चिंतन अनिमेष ।। १. बीती बेळां बे घड़ी, एक बजे श्वास-वेग अति विस्तर्यो, सो थरहरू ढाळ: ११. दोहा अन्दाज । समाज ।। २. देख विषमगति नाड़ री, डाक्टर वर कविराज बोलै, अब मुश्किल बचे, गणनायक-तनु आज ।। ३. रघुनंदनजी तो बण्या, है अतिमात्र विहस्त । तीन नाड़ियां में कहै, एक ४. स्वामी स्वमुख समुच्चरै, तेड़ो ततखिण आया श्रमणगण, ५. शीघ्र-शीघ्र आ वंदना, कर बैठ्यो मैं गुरु पोढ्या करवट लिंयां, सारो संघ TV १. पित्त की नाड़ी २०८ / कालूयशोविलास-२ समूची तिण नै वर्णवता अस्त । । बेग । उद्वेग ।। पास । उदास ।।
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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