________________
३२. सिर धार्यो कर आपरो रे, रही न कोई काण।
मन-चिंत्या सारा हुसी रे, गुरु रै पुण्य-प्रमाण।। ३३. मनचाह्यो मोको मिलै रे, सेवा रो इकदाण।
आही अन्तर भावना रे, गुरुवर जीवन-प्राण!
'हां रे शासण-नायक री, मधुरी-मधुरी बोली प्यारी लागै रे, तुलसी!
३४. तब गुरु दै आश्वासना,
जाणक आंसू पूंछै ऊंचे भावै रे, तुलसी! निज बूथा सारू सझै,
सेवा जिण स्यूं जो सझणी में आवै रे, तुलसी! ३५. अब भी जो म्हारो बच्यो
आयुर्बल तो तूं रहसी मुझ पासे रे, तुलसी! नहिं तो गण रुखवाळसी,
आ पिण म्हारी सेवा क्यूं न विमासे रे, तुलसी! ३६. धीरज धर मत कायरी,
मन पर ल्या तूं, मंगलमय गुरु भाखै रे, तुलसी! यूं अंतर आश्वास स्यूं,
प्रोत्साहित म्हारो मन शम-रस चाखै रे, तुलसी! ३७. दो क्षण रुक निश्वास ले,
बण गंभीर सुगुरु मुझ सम्मुख जोवै रे, तुलसी!
ओ अतिलम्बो आऊखो,
इण युग में नहिं प्राय फलप्रद होवै रे, तुलसी! ३८. जननी छोगां जीवती,
आ असाध्य-सी म्हारै अंग उपाधी रे, तुलसी! .. तूं ही अब संभाळजे, • रहै सदा संयम में चित्त-समाधी रे, तुलसी! ३६. माजी री सेवा सझी,
खूमांजी आजीवन खिण-खिण जागी रे, तुलसी!
१. लय : ओळ्यूं
उ.६, ढा.६ / १६५