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जोड़ी पर पोढ्या गुरु,
मैं बद्धांजलि बैठ्यो विस्मित भारी रे, तुलसी! १३. धीमै स्वर गुरुवर कहै,
'बेठ्यो कर' तब म्हारै हाथ सहारै रे, तुलसी! अश्रुतपूर्व प्रमोद में,
बैठ सुखासन जाणक इमरत झारै रे, तुलसी! १४. सुण तूं म्हारी बातड़ी,
बड़ी पीड़ स्यूं म्हारो तनु पीड़ाणो रे, तुलसी! वाम-हस्त-व्रण-योग स्यूं,
बण्यो अनेक व्याधियां रो थिर ठाणो रे, तुलसी! १५. अब संभव लागै नहीं,
ओ शरीर आ ज्यावै सागी चांकै रे, तुलसी! वैद्य विशारद डॉक्टरां,
झांकी आ ही स्थिति म्हारो मन आंकै रे, तुलसी! १६. आज तनै मैं स्थिरमना,
तेड्यो है एकान्ते भार भुळाऊं रे, तुलसी! भैक्षव शासण री मता,
ममता क्षमता लै सारी संभळाऊं रे, तुलसी! १७. सुणतो रहग्यो स्तब्ध-सो,
एक बार तो सहसा सद्गुरु-वाणी रे, तुलसी! आज अचानक आ स्थिति,
इंयां सामनै आसी कदै न जाणी रे, तुलसी! १८. क्षण विश्रम श्रमणेश्वरू,
बोलै केवल एक सीख दिल धारी रे, तुलसी! सजग सदा रहजे सुधी!
ज्यूं कोई नहिं आंकै लघु वय थारी रे, तुलसी! १६. वय बालक प्रतिभा-बले,
प्रगट प्रौढ़ कहिवावै विभव बढ़ावै रे, तुलसी! प्रवया शिशु-सवया बणै,
जो विवेक-बल-वृद्धभाव नहिं पावै रे, तुलसी! २०. बोलत गुरु जब विश्रम्या,
महर-नजर स्यूं रह्या झांकता स्हामै रे, तुलसी! गहरी बणी गभीरता,
उ.६, ढा.६ / १६३