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१६. कहतां नहिं चिंतन करतां ही टूट पड़ै ज्यूं प्हाड़ ।
टुकड़ा टुकड़ा हुवै कलेजो बढ़े व्यथा री बाढ़ । काळ-रात बा कदे न देखां नियती कोल निभावै ।। १७. अविच्छिन्न ज्यूं रही श्रृंखला गण री रहै अबाध, म्हांरै स्यूं बेसी चिंता है गुरुवर ! करूं प्रमाद । जो भी समझो अगलां - बगलां सगलां री रह ज्यावै ।।
'धन्नां रा जाया! मगन! सुणो म्हांरी बात, काया री छाया ! मगन ! सुणो म्हांरी बात । अन्तरमन रा भाव सुणाऊं, पाऊं परम प्रभात ।।
१८. मैं नहिं सोची ओ म्हांरो वपु यूं करसी व्याघात । अटल अडिग विश्वास वास में सोयो कल तक रात ।। १६. कोई आकर कुछ भी केतो मन नहिं देतो साथ |
बहमी - बहमी कह्या आपनै भारी मन आघात ।। २०. आज तिथी भादो बिद दशमी स्वयं जची साख्यात ।
अब ओ पिंजर पिंड छुड़ासी संशय नहिं तिलमात ।। २१. आप अनुभवी डाक्टर' हितकर पंडितजी प्रख्यात ।
सही-सही तीनां री कहणी गवा भरै ओ गात ।। २२. अब जलदी स्यूं जलदी करणो भावी संघ सनाथ ।
भूलचूक भी नहिं दोहराऊं माणकगणि री ख्यात ।। २३. 'साठ बरस' 'बीदासर - धरती' 'जननी रै उपपात' ।
धरी रही सब मन की मन में, गगन भरै कुण बाथ ? २४. शीघ्र- शीघ्र अब काम समेटूं सारो हाथोहाथ ।
श्वास करै विश्वासघात यदि फिर तो आथ न साथ ।। "समुचित अवसर शुभ ग्रह- गोचर श्री चरणां में आवै । विनय सुणावै गुरुकुलवास में, हो वास में हो वास में ।।
१. लय : स्वामीजी ! थांरी बा मुद्रा जग ख्यात
२. मुनि मगनलालजी
३. अश्विनीकुमार
४. रघुनंदनी
५. लय : ठुमक ठुमक पग धरती
१६० / कालूयशोविलास-२