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७. कुंदन चंपक चौथ मुनि, सविनय मगन-समक्ष ।
दरसावै गुरुवर-वपु, क्षीण, सत्त्व प्रत्यक्ष ।। ८. म्है तो सब निश्चिंत हां, चिंता करस्यो आप।
निश्चित संघ-प्रबंध री, होणी चावै थाप।।
'समुचित अवसर शुभ ग्रह-गोचर श्री चरणां में आवै, विनय सुणावै गुरुकुलवास में, हो वास में हो वास में।।
६. बालगोठिया श्री कालू रा मगन अनुभवी संत,
आगल-पाछल वर्तमान रो सोचै सकल उदंत। संतपती ज्यूं धीज पतीजै बो ही पथ अपणावै ।।
विनय सुणावै गुरुकुलवास में, हो वास में हो वास में।। १०. जद-तद भी मैं हाजर होकर कीन्ही अरज कृपाल,
बहम आपरो बहम आपरो कहकर दीन्ही टाल।
अब फिर आयो बणूं न कायो साहस सुगुरु बढ़ायै ।। ११. खोल्यो हृदय-कवाड़ अश्विनीकुंवर आपणे पास,
रघुनंदनजी पिण दुहराई बा ही बात हताश ।
अंग उत्तरोत्तर उत्तर दै गुरुवर गौर करावै।। १२. जुग जुग जीवो शासनदीवो पीवो स्नेह अगाध,
श्री मघवा रो लाल लाडलो सदा रहो साहाद।
हार्दिक साखां लाखां मानव इसी भावना भावै।। १३. जिणशासण रो थारै ऊपर सारो दारमदार,
अखिल विश्व में उद्योतन रो प्रद्योतन पर भार।
कुण दोभागी दंभी दागी बागी स्वास्थ्य न चावै।। १४. पर दुनियां में चलसी दुनियादारी रो व्यवहार,
तीर्थंकर भी मोक्ष सिधावै निराधार-आधार।
अन्तर्यामी अब आगामी थोड़ो ध्यान दिरावै।। १५. नहिं विस्तर में जाणो चाहूं गाणो चाहूं ढूंक,
जळ्यो दूध रो बहमी मानव छाछ पिवै दे फूंक। है माणक-इतिहास सामनै जाणक जागृति ल्यावै।।
१. लय : ठुमक ठुमक पग धरती
उ.६, ढा.५ / १८६