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४४. जोड़ी पर गुरुवर रजे पावस्थित है मुनि मगनेश क।
डॉक्टर बेठ्यो सामनै नयणां झरतो जल अनिमेष क।। ४५. गद्गद स्वर अति व्यथिततर बोलै पत्थर-दिल निर्व्याज क।
अकथ-कथा मन की व्यथा म्हारी आ अन्तिम आवाज क।। ४६. सुकृत-पिण्डित पिंड ओ धर्ममूर्ति धृत-धैर्य-स्वरूप क।
वाम-हस्त-व्रण-योग स्यूं बण्यो विज्ञवर! अधिक विरूप.क।। ४७. बाह्याभ्यंतर यंत्र रा लक्षण अब अवलोकत प्राय क।
है संदिग्ध अवस्थिती दीनानाथ! बात निरुपाय क।। ४८. अप्रियतम आ कल्पना करणी कहणी असुख अमाप क। ___अणकहियां पिण जो रहूं, स्वाम-द्रोह रो लागै पाप क।। ४६. आगामी अब आपको जो करणो है करो प्रबंध क।
अनुचित अनुभवस्यो नहीं म्हारो कहणो करुणासिंध! क ।। ५०. स्पष्ट मुखर्जी' मुख सुणी चिंतनीय है विषय विशेष क।
श्री कालू मन अनुभव्यो चौथी ढाळ नवीन निवेश क।।
ढाळः ५.
दोहा १. रघुनंदनजी पिण तदा, मगन पास एकान्त। ___ आ बेठ्या विभ्रान्त-सा, श्रान्त क्लान्त विश्रान्त।। २. करै नहीं औषध असर, सब प्रयतन बेकार। __भारी चिंता रो विषय, गहरो मन पर भार।। ३. कहै मगन पंडितप्रवर! अनुभव रै आधार।
साफ-साफ क्यूं ना कहो, जो भावी आसार? ४. तर-तर तनु तनुता भजै, उलझै आमय अंग।
को न इलाज सझे अजे, जटिल बिमारी जंग।। ५. प्रांजल-दिल बद्धांजली, बोलै कविवर बाध्य।
स्पष्ट कहूं गुरु-गात में, है उपताप असाध्य ।। ६. है केवल उपचार ही, अब करणो उपचार।
धिकसी टिकसी दिन किता? कहणो कठिन करार।।
१. डॉ. अश्विनीकुमार मुखर्जी
१८८ / कालूयशोविलास-२