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२७. राजलदेसर थाणपति, कीन्हो स्वर्ग-प्रयाण । पांचम बिद पख भादवै, जीवन रो कल्याण । । २८. पाळ्यो संयम सांतरो, बरस
ऊणपच्चास । सोल्लास ।। राखती जोर । कठोर ।।
बालकाल ब्रह्मचारिणी, सदा हृदय २८. सरस शास्त्र-स्वाध्याय में, सतत समभावे वेदन सही, ३०. सिंघाड़ो अति दीपतो, नवलां जेठांजी पछे, ३१. जीते जी नहिं देखियो, अति धन्या पुण्या सती, साध्यो सफल प्रयोग । | ३२. गुरुवर स्वमुख प्रशंसियो, पंडितमरण-प्रकार । म्हांरै औरै अंग रो रहतो प्राय विचार ।।
काट्या कर्म आकर्षक व्याख्यान । साध्वीप्रमुखा - स्थान । । भाई- सुगुरु-वियोग ।
'बोलै मगन सघन दिल बेदल विरह-घटा उमड़ाई है। ओ लाखीणो लाल लाडलो क्यूं काया कुम्हलाई है ?
३३. जावद स्यूं जद स्यूं मैं देखूं तर तर तनड़ो है छीज्यो, कुण जाणै कि कारण तारण ! कोई कुग्रह है खीज्यो । अथवा उदय वेदनी जोगे आ आई निबळाई है ।। ओ लाखीणो लाल लाडलो... । । ३४. चूंट चूंट कर चींट्या ज्यूं चिंता निशि वासर चोट करै, दिन की भूख रात की निद्रा मूक होठ - जुग मौन धरै । होणहार रै आगै लागै किसी कला-चतुराई है ? ३५. शैशव स्यूं ही साथै रहता सहता समय बितायो है,
अब आ जोड़ी नहीं बिछुड़ज्या मन संदेह उपाय है । भावी भाव केवळी देख्या त्यूं ही होती आई है । ।
कालूगणी उवाच
३६. कब स्यूं आ बहमीली आदत आप अनोखी अपणाई, केवल बहम-बहम कर-कर क्यूं नई कल्पना निरमाई । म्हारो है अन्दाज आज भी टळ ज्यासी आ घाई है ।।
१. लय : कहनी है इक बात हमें इस देश के पहरेदारों से
१८६ / कालूयशोविलास-२