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________________ ५. स्थान-स्थान स्यूं और भी, आया डाक्टर वेद। पिण किण ही दीन्ही नहीं, तन-आरोग्य उमेद ।। ६. यूं करतां श्रावण बदी, अमावसी रै बाद। ___ पंचमि-समिति पधारणो रुक्यो, न रुक्यो विषाद।। ७. सावण सुद दशमी निशा, मुझ स्यूं रामचरित्र। शुरू करायो स्वामजी, सुणता स्वयं विचित्र।। ८. चल्यो हुसी दो तीन निशि, मैं रोक्यो स्वयमेव। ___ अति महंगी गुरु-चरण री, नहिं छोड़ीजै सेव।। बात सणो अति विरह री। मति करज्यो दिलड़ो दिलगीर क।। ६. दिन-दिन दुर्बलता बढ़े, पीड़ा-पीड़ित पूज्य शरीर क। तो पिण प्रवचन आदि रो, नहिं छोडै श्रम सुगुरु सधीर क।। १०. विनवै शासणनाथ स्यूं, विनयी शिष्य जुगल कर जोड़ क। ____ अतिश्रम आवत-जावतां, जीवन-प्राण! हुवै जी-तोड़ क।। ११. जब लग आमय अंग में, तब लग आप रखावो माफ क। ___यद्यपि सब श्रवणोत्सुका, मुनिपति-मुख रो मधुरालाप क।। १२. हां हां सन्तां! साच है, अंग विरंग हुवै अणपार क। पिण व्याख्यान दियां बिना, पुर-पुर प्रसरै बात विचार क।। १३. आखिर अति दौर्बल्य स्यूं, प्रवचन में पधराणो बन्द क.। मैं उपदेश शुरू करूं, पाछै बांचै मगन प्रबंध क।। १४. पड़िकमणो दोनूं बखत करता परखद बीच विराज क। सो पिण है सहज्यां रुक्यो, सूकी खांसी रो सम्राज क।। दोहा १५. सुद तेरस तिथि श्रावणी, प्रतिक्रमण व्याख्यान। परिषद में करणो रुक्यो, बात निजोरी जान।। १. लय : संभव साहिब समरिए २. वर्धमानदेशना नामक संस्कृत गद्य ग्रन्थ १८४ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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