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२७. पढ्या विबुधवर श्लोक रच्योड़ा, समुचित रेखाचित्र खच्योड़ा।
पूज्य-व्याधि रो पूरण विवरण, है प्रकरण साक्षातकार रे।। २८. गंगापुर आणै में अक्षम, रच्या श्लोक षट' लक्ष्मी सक्षम।
बन्द लिफाफै गोठीजी-कर पहुंचाया विशद-विचार रे।। २६. पत्र खोल पंडितजी बांचै, अक्षर-अक्षर हारद खांचै।
स्वीकृत पद्धति स्वमुख सराही, श्री दाद-शिष्य उदार रे।। ३०. पुनरपि उत्साहित कविवरजी', सबल सजोश चिकित्सा सरजी।
उलट-पलट कर पुनि-पुनि औषध, त्यूं पथ्य-प्रबंध प्रचार रे।। ३१. सूकी खांसी सदा सतावै, चमत्कार इक बार दिखावै।
अरडूसा के साथ दवा स्यूं, है कास-वेग बेकारं रे।। ३२. क्षणिक शांति निशि निद्रा आई, म्हारी रोम-राजि विकसाई।
ढाळ तीसरी षष्ठोल्लासे गुरु 'तुलसी' तारणहार रे।।
ढाळः ४.
दोहा १. चाल शहर-सरदार स्यूं, आयो डॉक्टर श्याम ।
पूज्य अंग री गतिविधि, देखी प्रातः शाम ।। २. और चिकित्सा-क्रम स्वयं, पंडितजी रो पेख।
निज अनुभव आधार पर, करै स्वयं उल्लेख।। ३. सुंदर स्यूं सुंदर चल्यो, आमय रो उपचार।
रघुनंदन नै दाद दी, डाक्टर बारंबार ।। ४. पर असाध्यता में गयो, श्री-शरीर रो रोग।
कठिन कठिनतर कठिनतम, होवै अंग अरोग।।
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१. देखें प. १ सं. ५० २. राजवैद्य स्वामी लच्छीरामजी ३. आशुकविरत्न पंडित रघुनंदनजी ४. राजवैद्य पंडित लच्छीरामजी ५. आशुकविरत्न पंडित रघुनन्दनजी ६. डॉ. श्यामनारायणजी
उ.६, ढा.३,४ / १८३