________________
२०. समुचित पेय न प्यास मिटावै, भोज्य मनोगत भूख बढ़ावै । दीप जलै पर तम ज्यूं को त्यूं, बड़ी समस्या आय खड़ी क्यूं ।। २१. अगदंकार इसो न पड़ोसी, मानस आशंका परिमोषी ।
-
-
परामर्श भी ल्यूं तो कीं स्यूं, शांत नहीं जिज्ञासा जीं स्यूं ।। वैद्य-हकीमां,
२२. छोटा-मोटा
बणै न काम लांघगी सीमा । संतां साथ विमर्षण कीधो, सुंदर - सो इक निर्णय लीधो । । २३. राजवैद्य जयपुर रा वासी, लच्छीराम नाम विश्वासी । दादूपंथ-संत संता राभक्त, प्रबुद्ध वैद्य - विद्या रा ।। २४. यदि संभव हो तो बै आवै,
साक्षात रोग-परख कर पावै । सहज्यां परामर्श हो ज्यावै, चिंतन की सुस्ती सो ज्यावै ।। २५. सारी स्थिति पत्रांकित कीधी',
संस्कृत भाषा सादी - सीधी । गोठीजी' जयपुर चल आया, पूर्ण - चौपड़ा रे साथी पाया । ।
आयुर्वेदी
१. देखें प. १ सं. ४६
२. वृद्धिचंदजी गोठी, सरदारशहर
३. पूर्णचंदजी चौपड़ा, गंगाशहर
४. लय : यह तेरापंथ महान ५. राजवैद्य लच्छीरामजी
१८२ / कालूयशोविलास-२
उपचार ।
२६. पहुंच्या प्रवर चिकित्सालय में, स्वामीजी रै नियत निलय में । कर प्रणाम कर सूप्यो कागज, रघुनंदन रो उपहार रे ।।