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________________ आयुर्वेदी उपचार। करै रघुनंदनजी सुविचार रे, अविकार रे।। १०. यथारोग भैषज्य-विधायी, शास्त्राध्यायी अनुसन्धायी। अनुभव विभव निधान निखालिस, निज हुन्नर में हुशियार रे।। ११. उदर-व्याधि मूल कर मानी, मन्दाग्नी भी रही न छानी। ज्वर-वैषम्य रु सूकी खांसी, सारै तन शोथ-प्रसार रे।। १२. पूरी क्रिया न यकृत करै है, खायो अन्न न जरा जरै है। ___अति उबाक अरु उदर-वृद्धि भी, है विभीषिकाकार रे।। १३. घाव भरै नां बांयै कर रो, कुण जाणै व्रण किसै कदर रो। बिच में आ मधुमेह जुड़े है, हा! बढ्यो कितो परिवार रे।। १४. विविध औषध्यां है प्रारंभी, कम मात्रा पर अवधी लंबी। ___सींचे नित गोमूत्र उदर पर, पथ्य तथ्य आधार रे।। १५. बड़ी कीमती चढ़ी दवायां, पंडित-प्रतिभा की परछायां। सूक्ष्म-परीक्षण सदा-सदा कर, सायं और सवार रे।। १६. सेवाभाव श्रमण-श्रमण्यां रो, अविश्राम इंगित बहणां रो। अर्थहीन सब जब लग गुरु रो, हुवै न स्वास्थ्य-सुधार रे।। १७. दिन ऊपर दिन निकळ्यां जावै, कोई दवा काम नहिं आवै। सारो प्रयतन पंडितजी रो, 'भस्मनि हुत' अनुकार रे।। चौपई छन्द १८. औषध पथ्य सेव सेवार्थी, प्रतिपल करै संत परमार्थी। पर अबलों नहिं राई-पाई, स्वास्थ्य-सुधार-दिशा दरसाई।। १६. रोग-निदान नहीं पकड़ीज्यो, या कोइ औषध गलत दिरीज्यो। क्यूं न चिकित्सा रोग हरै है? पंडितजी मन सोच करै है।। १. लय : यह तेरापंथ महान उ.६, ढा.३ / १८१
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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