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२१. नेत्र-निरीक्षण नाड़ि-परीक्षण कर निदान शुभ कीधो, अनुभव रै आधार स्वयं उपचार शुरू कर दीधो । दूजी ढाळे रे ज्ञान-ग्रंथियां खोलो।।
ढाळः ३.
दोहा
बणाव ।।
सुजाण ।
१. जड़ जनता में जोर स्यूं, उठ्यो बवण्डर एक। हिरणां री हेली तजै, जो स्वामी सुविवेक ।। २. बीमारी सारी कटै, कंचन हुवै शरीर । क्यूं कि हवेली में बसै, जक्ष जोगणी वीर ।। ३. आज हुयो कोई कहै, सपने में दरसाव । पित्तर मूंदै बोलिया, अद्भुत बण्यो ४. साची घटना रात री, निचले तलै बेठ्यो ही मानव गुड्यो, देव- प्रयोग पिछाण' ।। ५. कुण जाणै क्यूं विस्तरी, मूंदै-मूंदै बात? राक्षस भूत पिशाच री, हुई कठै शुरुवात ।। ६. भयभ्रांत कइ जन बण्या, कहै पूज्य पे आय। जगन्नाथ ! बदलो जग्यां, सरल स्वास्थ्य सदुपाय ।। ७. पूज्य कहै पागलपणो, जनता है अणजाण । इसी बिना सिर-पांव री, बात करै अति ताण । । ८. भूत- पलीत-विभीषिका, सहस्यां खूब सताब ।
पर शय्यातर गेह री, नहीं घटावां आब ।। ६. रहणो इण ही स्थान में, दुख-सुख कर्मज जाण । व्यावहारिक उपचार-पथ, पंडित करै प्रयाण ।।
१. बीकानेर निवासी जवाहरमलजी कोठारी सामायिक कर रहे थे, नींद आने के कारण वे लुढ़क गए, लोगों ने उस घटना को देव-प्रयोग के रूप में स्वीकार किया ।
२. आयुर्वेदाचार्य पंडित रघुनंदनजी
१८० / कालूयशोविलास-२