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________________ ११. चित चिंतवता इण चोमासे अद्भुत लाभ उठास्यां, सूत्र भगवती गुरु-मुख सुणस्यां प्रश्न- पडुत्तर पास्यां रह्यो अधूरो रे दिल रो दिल में डोळो । । १२. सेवार्थ्यां नै अवसर दे दे हर्या - भर्या कर देता, पूछताछ कर आश पूर कर सारां री सुध लेता । दुर्लभ बणग्यो रे अब ओ रतन - कचोळो । । १३. है बेकार चिकित्सा पद्धति देशी और विदेशी, अब लों श्री कालू-शरीर पर असर नहीं कम - बेसी । बारीकी स्यूं रे कोई आय टटोको ।। १४. अथवा ओ एकांत क्षेत्र नहिं मिलै भिषगवर भारी, उच्चस्तर डाक्टर की भी नहिं सुविधा संशयहारी । भारी भरकम रे जिनदर्शन रो चोलो ।। १५. आयुर्वेदाचार्य आर्य यदि रघुनंदनजी आवै, सुगुरु- शरीर - चिकित्सा रो सारो दायित्व उठावै । तो मनचाह्यो रे होवै काम सतोलो ।। १६. खबर मिली बेतार-तार स्यूं जाणक दोड्या आया, देख आशुकविरत्न च्यार तीरथ रा दिल उलसाया । ल्यो अब पंडितजी ! 'सुश्रुत' 'चरक' फरोको ।। १७. रघुनंदनजी मन घन - विस्मय कायिक- कृशता देखी, बो गजेन्द्र-सो गात सुगुरु रो अतिशायी उल्लेखी । भावुक भावे रे दीठो हाथ - फफोलो ।। १८. राहु-ग्रसित चांद-सी छाया आ काया कोइ माया, अधम रोग कुण लग्यो नरोत्तम ! थोड़ो तो समझाया। छोगां - जाया ! रे मैं तो रह्यो अबोलो ।। १८. अखिल त्रिलोकी रही विलोकी तुझ तनु निजर टिकायां, रहो निरामय नाथ ! सुधामय जंगम सुरतरु- छाया । सन्त तुलै नहिं रे हीरां रतनां तोलो ।। २०. मगन हकीगत बिगतवार सब शांतमना संभळाई, 'जावद' जेठ बदी दशमी स्यूं 'गंगापुर' अब तांई । अब जो करणो है सविध विबुधवर ! बोलो ।। उ.६, ढा.२ / १७६
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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