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ढाळः २.
दोहा १. अब पावस-प्रारंभ में, आयो श्रावण मास। ___ जलधर जलभर वृष्टि स्यूं, पायो घाम प्रवास।। २. पचरंगी सतरंगियां आदि तपस्या और। ___घर-घर में छाई सघन, वन-वन नाचै मोर।। ३. च्यारूं तीरथ में तरुण, अतुलनीय उत्साह।
झांक्यां आंख्यां बन्द है, सुगुरु-स्वास्थ्य री राह।। ४. अभिमत रूप मिल्यो नहीं, पथ में उचित इलाज। __बढ़तो-बढ़तो ही गयो, भीतर व्रण रो राज।। ५. हर्यो घाव मधुमेहमय, भर्यो न सहज प्रयोग।
नाना रूपां विस्तर्यो, तर्यो न जावै रोग।। ६. अन्न-अरुचि अरु अंग में, सूक्ष्म-ज्वर सातत्य।
यकृत-विकृति खांसी श्वयथु, तन-दुर्बलता तथ्य।। ७. एक ग्रास भी वदन में, लेतां हुवै उबाक। व्रण-वेदन गुरु-गात में, खूब जमाई धाक।।
आज म्हारै गुरुवर रो लागै अंग अडोळो। सदा चुस्त-सो रहतो चेहरो सबविध ओळो-दोळो।। ८. कुण जाणी व्रण-वेदन बेरण दारुण रूप बणासी,
सारै तन में यूं छिन-छिन में अपणो रोब जमासी।
ओ उणिहारो रे जाबक पड़ग्यो धोळो।। ६. दूर पंचमी-समिती जातां आई है निबळाई,
चलता लंबी-लंबी डग भर अब काया कुम्हळाई।
दिल बिलखावै रे खावै हियो हिलोळो।। १०. प्रवचन-मण्डप में प्रतिवासर सुधावर्षिणी वाणी,
सहज सुणाता मन उलसाता भवि-सौभाग्य-निशाणी। मूक उपासन रे कर-कर अब अघ धोलो।।
१. लय : कुंथु जिनवर रे!
१७८ / कालूयशोविलास-२