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________________ १०. देख एकता गण-गणपति में, चक्रबंधु अरु चकवा री। लोचन में रोचनता प्रगटी, विघटी भ्रमता जनता री।। ११. प्रवचन-मंच जलूस सभा में, परिणत विधिवत विस्तारी। सुस्वागत स्वागत अभ्यागत! सारी नगरी आभारी।। १२. एक घड़ी भर झड़ी लगाई, सरसाई जन-मन-क्यारी। वनमाली री बजी बांसुरी, फूली फली कुसुम-वारी।। १३. गंगापुर रा भाग्य सुरंगा, गंगा आई घर-द्वारी। मल-मल न्हास्यां पाप मिटास्यां, पास्यां शिव-सुख संसारी।। १४. 'रंग-भवन' में रंग लग्यो अब, ऋतु पावस री रिझवारी। रंगलालजी हिरण लह्यो, शय्यातर रो लाहो भारी।। १५. चतुर्विंशती व्रती साथ में, सप्तविंशती सतियां री। सेवा साझै गुरु-तन काजै अपणो तन-मन दै वारी।। १६. चल्या उदयपुर स्यूं गंगापुर पहुंच्या शासण-अधिकारी। यात्रा हुई आठ सौ माइल, नूतन रचना निरधारी।। १७. पुर-प्रवेश अखिलेश विवर्णन, पहली ढाळ परम प्यारी। 'तुलसी' गुरु-गौरव सह तुलसी, कालू करुणा-दृग डारी।। कलश छन्द १८. गच्छपति अति स्वच्छमति पावस तिराणू साल रो, कर्यो गंगापुर नगर चिंतन गहन गणपाल रो। स्वल्प संख्या में श्रमण-श्रमणी रख्या निज पास में, मैं करी अभ्यर्थना गुरु-चरण दृढ़ विश्वास में ।। १६. छत्तीस अरु पच्चास सिंघाड़ा बहिर विचरण करै, गुरु-आण-काण प्रमाण कर भंडार शासण रो भरै। इकचाल ऊपर एक सौ, चौतीस ऊपर तीन सौ, मुनि साहुणी रो संघ में सुंदर सुरंगो सीन-सो।। १. देखें प. १ सं. १६ २. देखें प. १ सं. ४८ उ.६, ढा.१ / १७७
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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