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________________ ढाळः १. दोहा १. अष्टमपट-अधिदेवता, करण चरम चउमास। कायिक कष्ट उवेख नै, गंगापुर सोल्लास।। २. श्रमणसंघ रा अप्रतिम, अनुपमेय आचार्य । कालू करुणाम्बुधि सविधि, समवसऱ्या अविकार्य ।। गंगापुर गुरु आया। गंगापुर गुरु आया, लुभाया मधु मधुकर ज्यूं नर-नारी, _जी कांइ मधु मधुकर ज्यूं नर-नारी। चंद चकोरां मोरां घन ज्यूं, निशिदिन बाट निहारी।। ३. शुक्लाषाढ़ द्वादशी दिवसे, भास्कर प्रहर चढ्यो भारी। जी कांइ भास्कर प्रहर चढ्यो भारी। अमृत-सिद्धि योग में स्वामी, सझी सजोरी असवारी।। ४. लोक हजारां खड़या बजारां, च्यारां ओर छटा छारी। अंबर में घन-घटा अटारी निरखै निजऱ्या कृषिकारी।। ५. कालू ललित ललाट थाट, महिमा विराट है मुखड़ा री। चळचळाट कर चेहरो चळकै, पळकै प्रबल प्रभाधारी।। ६. ब्रह्मचर्य रो ओज, मनोजां की-सी मूरत मनहारी। श्वेत केश शिर श्वेत वेष, साकार सुकृत-सुषमा सारी।। ७. गमन-योग-संगत शाश्वत-पथ, गणिवर गयवर-गतिचारी। सामय अंग निरामय-सो बण, बण्यो सहजता-सहचारी।। ८. संग अभंग श्रमणगण शोभै, अगणित श्रावक अनुचारी। ‘खमा-खमा' सामूहिक ध्वनि स्यूं ध्वनित धरा धरणीधारी।। ६. मधुर कंठ में मधुर गीतिका, मेवाड़ी-महिलावां री। सुणतां रूं-रूं ठरै, भरै मन सारै पथ में संचारी।। १. लय : नाहरगढ़ ले चालो १७६ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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