SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५. करुणा सौख्य समुन्नती, है जुग भेद भिदन्त। जयतु जयतु जगती तले, त्रैशल तेरापंथ ।। जिस त्रिशलानंद वर्धमान के अनुगामी तेरापंथ ने करुणा, सुख और समुन्नति के दो-दो भेद बतलाए हैं, वह तेरापंथ विजयी बने, विजयी बने। ६. जिन-अनुपस्थिति में यतो, तेरापथ विस्तार। सकल संघ पर भिक्षु रो, कोटि बार आभार।। तीर्थंकर की अनुपस्थिति में जिससे तेरापंथ का विस्तार हुआ, उस भिक्षु का सकल संघ पर कोटि-कोटि आभार है। ७. जब लों आत्मप्रदेश में, संविद को संचार। प्रथित रहो तब लों तरुण, तेरापंथ-प्रचार।। जब तक आत्मप्रदेश में संवित/ज्ञान या संवेदन का संचार है, तब तक तेरापंथ का प्रचार तरुण अवस्था में प्रथित होता रहे-विस्तार पाता रहे। ८. सुमरि-सुमरि पल-पल घरी, तेरापंथ-पथेश। अब छ? उल्लास री, रचना रचूं सुवेष।। मैं तेरापंथ के अधिनायक पूज्य कालूगणी का हर घड़ी और हर पल स्मरण कर छठे उल्लास की सुंदर आकार वाली रचना कर रहा हूं। उल्लास : षष्ठ / १७५
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy