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ढाळः १६.
दोहा १. सरकारी डाक्टर सही, नंदलालजी नाम।
व्रण-शोधन समये रहै, हाजर प्रातः शाम।। २. डाक्टर वर अश्विनिकुमर, कलकत्ता स्यूं चाल।
आयो अति आकुलमना, भेट्या देव दयाल ।। ३. भ्रात' विभूतीभूषण, तेरापथ रो भक्त। ___ शहर लाडणूं स्यूं चल्यो, आयो अति अनुरक्त।। ४. पहुंच्यो ईडर स्टेट स्यूं, मालमसिंह सुजाण। __ उदियापुर रो है भंवर-डोसी पुत्र पिछाण।। ५. मिल च्यारूं डाक्टर करै, निश्चित जो उपचार।
शिष्य-वर्ग त्यूं साचवै, होकर मन हुंशियार।।
करारो कुटिल वेदनी कर्म, समझू समझै मर्म, करारो....। धीरो मानव धर्म, करारो.... ।।
६. अश्विनि बाबू अनुभवी रे, सोचै शांत प्रशांत। ___ घाव सदा ज्यूं-त्यूं रहै रे, निश्चित हेतु नितांत ।। ७. शायद शूगर है बढ़ी रे, मूत्र-परीक्षण आज।
करणो है, कीधो सही रे, सही रह्यो अंदाज।। ८. पहिला यदि शूगर मिटै रे, तो सिमटै ओ घाव।
सघन जतन करणो घटै रे, विघटे नहिं सद्भाव।। ६. दवा देण डाक्टर चहै रे, गहै न गुरु मृदुभाष। ___ बहै स्व विशद परंपरा रे, जहै न निज विश्वास।। १०. कहै अश्विनी मम दवा रे, गहै न क्यूं गुरुदेव।
श्रावक ज्यूं इण संघ की रे, सदा की करूं सेव।।
१. डॉ. अश्विनीकुमार का भाई विभूतिभूषण २. लय : खिम्यावंत जोय भगवंत रो
१६८ / कालूयशोविलास-२