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________________ ६. आश खास तिण आगले, जो हि करै सफलाश। सारंग सागर-गाज पे, जपै न 'पिउ-पिउ' भास।। ७. श्रीमुख स्यूं शासणपति, तिराणवै चोमास। गंगापुर स्वीकृत कियो, दियो बड़ो आश्वास।। अथग उचरंग उपावै जी, उमंग रंग बरसावै जी। ८. गंगापुर गरिमा बढ़ी जी, पायो वर वरदान। अंतरंग उल्लास रो जी, कवण करै अनुमान।। ६. प्यास बरस पच्चीस री जी, आश अटल हर बार। ऋतु आयां फल नीपजै जी, सत्य वचन सुविचार ।। १०. फलित प्रतीक्षा है हुई जी, क्षुधित चख्यो पकवान। ____द्रविण-विहूणो देखियो जी, घर में रत्न-निधान ।। ११. चातक रो पातक कट्यो जी, प्रगट्यो घन-रस पोष। घणखरचू-कर अणघट्योजी, सिमट्यो अविकल कोष ।। १२. प्हाड़-हाड़ मेवाड़ रो जी, गाढ़ हरस स्यूं चूर। धरती परतख देखल्यो जी, दूर-दूर सांकूर ।। भयंकर व्रण स्यूं रे, जकड्यो स्वाम शरीर, अटल निज प्रण स्यूं रे, धीर वीर गंभीर। असर नहीं उपचार रो रे, झाल्यो जिद्द हमीर ।। १३. भजै वाम कर वामता रे, सझै नहीं उपशाम। __पीड़-अर्जणी तर्जणी रे, सघन गर्जणी घाम।। १४. छोटे कद में दीखतो रे, जावद में जो रूप। लाजविहूणो आज तो रे, बण्यो घणो विद्रूप।। १५. बांधी ऊपर लूपरी रे, भरी पीप स्यूं पूर। कुकै कुटिल विष विषमता रे, प्रसरी पीड़ प्रचूर ।। १. लय : सपना २. गंगापुर के श्रावक पच्चीस वर्ष से आचार्यश्री कालूगणी के चातुर्मास की प्रार्थना कर रहे थे। ३. लय : हरी गुण गायलै रे ४. देखें प. १ सं. ४३ १६२ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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