SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६. साठ बरस री आयू जी, जानू वर्धित वायू जी, जो है पन्थ सहायू जी, तो पिण विरुद निभायू जी। 'सेलानै' पथ पहुंच ‘जावरै' मन्दसोर री दोर ।। अब मेवाड़ री धरती की ओर शुभ प्रस्थान है। ३७. बो ही है 'रतलाम' बो ही 'जावरो' 'निमच' बो। आवत जावतां में आंतरो भू-आसमान है।। ३८. 'जावद' जागी ज्योत 'कुंदन' 'चौथ' जनम-भूम में। पांच रात में संभारी वारी पान-पान है।। ३६. बिद दसमी आकस्मिक ऊठी बाएं कर में वेदना। कण-सी फुणसी रै इतिहास रो करणो संधान है।। ४०. पांचवै उल्लास में सोल्लास ढाळ बारमी। 'तुलसी' सामनै चित्तौड़गढ़ चोड़ो चोगान है।। ढाळः १३. दोहा १. मगन विलोकी पूज्य-कर, उठती फुणसी एक। सळी जाण शूले खणी, बढ्यो जोश अतिरेक।। २. साधारण नहिं समझणी, आ व्रण-कणी व्रतीश! काफी खेचळ खाटणी पड़ती दीसै ईश! ३. सहज चिकित्सा है शुरू, शीतल जल रो सेक। बढ़ी वेदना वेग स्यूं, कहूं कल्पना-छेक।। ४. चलतां-चलतां अनवरत, आया गढ़ चित्तौड़। __मेदपाट रा मानवी, नवी मचाई दौड़।। ५. गंगापुर गौरव भर्यो, करै प्रार्थना पूज! अब पावस घोषित करो, मन की हरो अमूझ।। १. लय : रोको काया री चंचलता २. जेठ कृष्णा उ.५, ढा.१२, १३ । १६१
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy