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३१. केसर-बाई' श्राविका, खूब बजाई सेव। भीखण चोरड़िया बहू,२ आराध्या गुरुदेव ।।
गीतक छंद ३२. प्रेसवाळा मालजी री मां हुलासी सुंदरी',
सूवटी समदा गभीरी सजग खुशियां स्यूं भरी। मालवै मेवाड़ श्रावक-श्राविकावां सहज ही, रह्या साथै सुगुरु-करुणा-दृष्टि अमि-वृष्टी लही।।
___ दोहा ३३. ग्राम-ग्राम रा और भी, विस्तृत नाम अनेक।
सेवा श्रावक-श्राविका, साधी विमल विवेक।। ३४. अंकित हुया न भूल स्यूं, मत करज्यो मन खेद।
कारण है छद्मस्थता, मन में सदा अभेद ।।
मालव में मतिमान
३५. गुरुवर आगम ज्ञानी जी, देवतरूवत दानी जी,
पूरी स्थिति पहचानी जी, विचऱ्या कानीं-कानी जी। अब मेवाड़ प्रांत पथ लीन्हो सारा नै संतोष ।।
१. केसरबाई रामपुरिया (बीकानेर)। वि. सं. २०३२ भाद्रव शुक्ला ६ पट्टोत्सव के दिन
आचार्यश्री तुलसी द्वारा 'दृढ़धर्मिणी श्राविका' इस विशेषण से सम्मानित। (विस्तृत विवरण पढ़ें ‘मगन चरित्र', पृ. १८१, सं. ६६) २. श्रीमती मघीबाई (सरदारशहर) ३. लाडनूं ४. सुजानगढ़ ५. सुजानगढ़ ६. सुजानगढ़-निवासी वृद्धिचंदजी सेठिया की धर्मपत्नी ७. समदड़ी ८. उदयपुर ६. लय : पिउ पदमण नै पूछे जी
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