________________
३२. खूब करी सेवा इन्दौरी, साधर्मिकता सझी सजोरी।
दुर्लभ समय विचारी, गुरु आज... ।।
सोरठा ३३. बौद्धिक बड़ो वकील, मोदी नेमीचंदजी। ___ श्रावक भक्त सलील, योग-साधना रो रसिक।। ३४. सिज्यातर अविवाद, बरसां स्यूं इन्दौर में। गुरु-सेवा साह्लाद, की पूरै परिवार स्यूं।।
___ 'गुरु आज बणै जलचारी। ३५. चातुर्मासिक प्रतिक्रमण कर, जागृत जीवाजोण खमाकर।
विचरै उग्रविहारी, गुरु आज।। ३६. पंचम उल्लासे सुविशाली, दसमी ढाल ढलकती ढाली।
'तुलसी' मुदित मना री, गुरु आज।।
ढाळः ११.
दोहा १. बीती मालव शिशिर ऋतु, अब बसन्त शुरुवात।
अविदित है किण स्यूं कहो, वर बसंत री बात ।। २. शीत न घाम प्रकाम है, सम निशदिन निर्व्याज।
सुरभित समता स्यूं सुरभि, है यथार्थ ऋतुराज।। ३. पतझड़ बीहड़ता निकट, एक ओर लू-झाळ।
सदा अप्रभावित रहै, ऋतु बसंत रो भाल।। ४. दिवस अविश्रम श्रम करो, सुखभर नींद निशंत। ___ योग-साधना-रत सतत, सेवै संत बसंत।। ५. नीम नीमझर स्यूं नमै, आम्र-मोर महकंत।
कोयल कुहुकुहु मिष पथिक-स्वागत करै बसंत।। ६. शिशिर एकतो शीततम, इतर घाम बिन अंत।
सदा शांत मध्यस्थ-मन, संत सरूप बसंत।।
१. लय : कर्मन की रेखा न्यारी
उ.५, ढा.१०, ११ / १५३