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________________ 'आ बेधारणा री बात, मुनिपति मालव में पधरासी, मुनिपति मालव में पधरासी, पुर पुर पावन पद-रज ठासी । गहरा - गहरा झंड जमासी, तेरापंथ-धजा फहरासी, जन- लोचन चकरासी ।। लख-लख २४. ओ इन्दौर शहर आयो, मालव- यात्रा अंतिम छोर, मालव यात्रा अंतिम छोर, समवसऱ्या गुरुवर कर गोर । म्हांरै कालेजा री कोर, त्रिशला - नंदन को सो तोर ।। २५. प्रतिदिन ओजस्वी व्याख्यान हुकमीचंद - निवास निहारो, हुकमीचंद -निवास निहारो, बाजै बास खास दितवारो । चमकै श्री गुरु चांद-सितारो, ओ साचो असहाय सहारो ।। २६. देख्या अद्यावधि जो शहर, पुर इन्दौर आगीवान, पुर इन्दौर आगीवान, औद्योगिक मोटा संस्थान । उत्पादन री मानो खान, व्यवसायिक खुल्लो मैदान ।। २७. संपन्न है पुरवासी, जैनधर्म री इज्जत भारी, जैनधर्म री इज्जत भारी, ऊंचा मंदिर है ध्वजधारी । स्थानक पौषधशाल सुप्यारी, उपासना नित सांझ - सवारी । । दोहा २८. प्रांत-प्रांत रा जातरी, आया पुर इंदौर । सुगुरु- सेव पुर निरखणो, संघ प्रभाव सजोर ।। २६. कलकत्ता स्यूं सदलबल, आयो ईशर सेठ । अति प्रसन्न -मानस हुयो, पूज्य - पदांबुज भेट ।। ३०. हुकम 'हाबली - काबली', स्वागत कर्यो अपार । खोल्यो ईशर सेठ हित, शीशमहल रो द्वार ।। गुरु आज बणै जलचारी | ३१. कर करुणा होळी चौमासी, पुर इन्दौर रह्या गुणराशी । अब अग्रिम तय्यारी, गुरु आज ... ।। १. लय : सुहाग मांगण आई २. देखें प. १ सं. ३६ ३. लय : कर्मन की रेखा न्यारी १५२ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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