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११. प्रथम-प्रथम व्याख्यान में रे कीधो न्याय निवेड़,
आशंका सारी छंटी रे मिटी भ्रांति-भटभेड़। मिटी भ्रांति-भटभेड़ परखदा पांगुरी,
उठ्यो चिकित्सक एक उठाई आंगुरी।। १२. म्हारै पुर हाबू बड्यो रे नायो काबू जाण',
घर-घर घट-घट में घुसी रेखुशी-खुशी लहताण । खुशी-खुशी लहताण, लोक भ्रम में भम्या,
इक प्रवचन रै पाण स्वयं सहु वीसम्या।। १३. चौथे दिन मध्याह्न में रे पंडित एक पुराण,
काव्य कोष व्याकरण रो रे अलंकार रो जाण। अलंकार रो जाण मनोरथ अब फळ्या,
भेट्या गुरु-पादाब्ज सकल संकट टळ्या।। १४. पूछै श्री शासनपती रे किं कारण कविराज!
लम्ब विलम्ब समाचर्यो रे सत्संगति कै काज। सत्संगति के काज विलक्षण क्षण-क्षणे,
आतुर बेअन्दाज सदा हृदयांगणे।। १५. नतमस्तक कविवर कहै रे सत्य दयालू देव!
व्यर्थ हुई है वंचना रे अफल रह्यो अहमेव । अफल रह्यो अहमेव करी मन कल्पना,
सुणस्यां खुल्लै कान जबानी जल्पना।। १६. उभय पक्ष प्रतिपक्ष की रे भारी मचसी भीड़,
मौखिक लेखिक रूप में रे बजसी खूब भचीड़। बजसी खूब भचीड़ सुरक्षा धर्म री
करण बहानै, खुलसी खान अधर्म री।। १७. देख एक नै होवती रे आशित-अन्न उबाक,
दूजां नै सहज्यां हुवै रे होबरड़ा-हरड़ाक। होबरड़ा-हरड़ाक तीन दिन बीतिया, आखिर मानी हार देव दरसण किया।।
१, देखें प. १ सं. ३१ २. देखें प. १ सं. ३२ ३. अभिधान राजेन्द्र कोश का काम करनेवाले विद्वानों में से एक वृद्ध विद्वान।
उ.५, ढा.८ / १४५