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________________ २. ज्येष्ठ जेठ-आषाढ़ रो, निस्त्रप निविड़ निदाघ । एक घनाघन की घटा, सकल मिटावै दाघ ।। ३. घटा अटारी ऊठती, कजरारी विकराल । बरसूं-बरसूं क्षणक में वात्या करै विहाल ।। ४. विद्या वर बहुरूपिणी, रावण रची दुसाध्य । सौमित्री' क्षण में करी, बाण धोरिणी बाध्य । । ५. त्यूं विपक्षि जन रो विपुल, उद्यम आशातीत । एक देशना में सुधी, विभुवर कियो व्यतीत । । ६. पछताया अनुताप स्यूं, पहलां दीधो स्थान । बहकावट स्यूं बदळग्या, आज संभा भान ।। ७. अब दुगुणो नहिं सोगुणो, हुयो पूज्य-सत्कार । रही बात आछी बुरी, बही बार जल-धार ।। आछो दिन आयो, गुरु गौरवशाली पुर रतलाम में । है भाग्य सवायो, गुरु गौरवशाली पुर रतलाम में ।। ८. सारै मालव प्रांत रो रे मध्य केन्द्र रतलाम, मंडी है व्यापार री जन यातायात प्रकाम । यातायात प्रकाम जैन बसती बड़ी, सोहे सरखी श्रेण मकानां री खड़ी ।। ६. चोड़ा - चोड़ा चोहटा रे बिच-बिच धर्मस्थान, स्थानक और उपासरा रे मोटा आलीशान । मोटा आलीशान पधारे गणधणी, फेली घर-घर बार बजारां सणसणी ।। १०. जाणक जाग्यो ‘जावरो' रे पोस्टर इस्तीहार, बो ही वातावरण में रे आयो एक उभार । आयो एक उभार मौत अपणी मरू, करै प्रतीक्षा आवै पूज्य प्रभाकरू ।। १. लक्ष्मण २. लय : भलो दिन ऊग्यो १४४ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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