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________________ १७. गो-बाड़ो जळतो अरु बिल्ली ऊंदर-हित मुंह बायो रे। ऊळजलूल उदारण दे भ्रम-जाल बिछायो रे।। १८. दया-दान असली हमदर्दी धर्म-मर्म पनपायो रे। कृत्रिम तर्क कुतर्कों में क्यूं बगत बितायो रे।। १६. 'व्यर्थ विरोध विनोद' पाठ ओ म्हारै पढ्यो-पढ़ायो रे। जनता स्वयं कसौटी सुवरण-शान बढ़ायो रे।। २०. 'काच-मणकलो रयण-टणकलो' अणसमझूमनभायो रे। निजरां निजरबाज री पड़तां वेग बगायो रे ।। २१. जिणरै मन कोई जिज्ञासा तो ल्यो उत्तर ठायो रे। छापाबाजी में पड़ क्यूं जड़ता-पथ पायो रे।। २२. मैं निज निजऱ्या देख्यो सद्गुरु भारी रस बरसायो रे। ओजस्वी व्याख्यान सुखद स्मृति में सरसायो रे।। मन मोहनगारो म्हारो नाथजी। २३. इक मुहुरत री देशना सुण लोग लग्या चकराण, लिख-लिख लंबा लेखड़ा, सह छाप्या वितथ बयाण रे। नर निंदक जे नादाण रे, रह्यो अन्तर घोर अनाण रे, क्यूं भूल्या सारो भाण रे, हुइ आज छाण पहचाण रे।। २४. मुख-मुख मघवा-शिष्य रो, सखे! जाग्यो जय जयकार, उत्तर प्रत्युत्तर बिना ही, संशय रो उपचार रे। प्रतिपक्ष्यां रो प्रतिकार रे, गुणग्राही लोग उदार रे, कहि सातविं ढाळ सुप्यार रे, मान्यो गुरु रो आभार रे।। ढाळः ८. दोहा १. संचित सारी रात रो, अंधकार-अधिकार। ___भानु-भानवी पलक में, अभ्र उड़ावै छार।। १. जो हमारा हो विरोध : हम उसे समझें विनोद २. देखें प. १ सं. ३० । ३. लय : मुनिवर विहरण पांगुऱ्या सखि! ४. कालूगणी उ.५, ढा.७, ८ / १४३
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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